मयंक की मौत को नहीं समझा देश -मिलावट बढ़ा रही है मौत का मनोबल -मौत मसलन अंत, चाहे वह किशोर है, प्रौढ़ है या बच्चा -सभी जिम्मेदारी निभायें तो मौत असमय झपट्टा नहीं मारेगी बृजद्वार। एक 17 वर्ष के किशोर की अचानक मौत कोई मामूली घटना नहीं, लेकिन इस घटना को 'नाम' मिला साइलेंट अटैक। प्रिंट ने इसको छापा और इलेक्ट्रानिक ने इसको दिखाया। बस पत्रकारिता खत्म। मगर असली पत्रिकारिता तो यहीं से आरंभ होती है। चाटुकारिता का तो कोई माइने नहीं है, लेकिन पत्रिकारिता कहती है क्यों, कैसे और क्या कारण। आइये आज के इस संदेश को कल के जीवन जीवन के लिए अध्ययन करते हैं। मौत अटल सत्य है, लेकिन हम संसारी प्राणी हैं और आज का समय वैज्ञानिक काल के नाम से जाना जाता है। खासकर कलयुग को बुद्धिजीवी कलिकाल यानी मशीनी व कलपुर्जों का युग कह रहे हैं। देखने में भी यही आ रहा है कि लगातार हर क्षेत्र में मशीनों का आविष्कार हो रहा है। जैसे पहले कपड़े मानव धोता था और एक अच्छा-खासा व्यायाम हो जाता था, लेकिन वाशिंग मशीन आई और व्यायाम खत्म। खाना बनाने के लिए पहले घर-घर में आटा ...