136 वां इतिहास गढ़ने के लिए मूछों वाले रामजी की तिमंजिला रथयात्रा का बजा विगुल
संजय दीक्षित
ब्रजद्वार 25 मार्च। 1882 में ब्रजद्वार हाथरस के नगर सेठ द्वारा आरंभ की गई श्रीरामजन्म के उलक्ष्य में तिमंजिला रथयात्रा रविवार को अपने 136 वें इतिहास को गढ़ा। चामड़ गेट स्थित गमेल वाली (रथवाली) बगीची से बाग बैनीराम के लिए निकली मूछों वाले राम जी की तिमंजिला रथ को देखने के लिए भक्तों भीड़ उमड़ पड़ी उत्साह देखते ही बन रहा था।
कैसे गढ़ा गया इतिहास और इसका रचेयता कौन था ?
हाथरस में चैत्रीय नवरात्र की नवमीं तिथि को निकलने वाली श्रीरामजानकी तिमंजिला रथयात्रा का अपना एक अनुथ ही इतिहास है। इसके रचेयताओं में खासतौर से हाथरस के प्रसिद्ध और उदारवादी सेठ बैनीराम का नाम सामने आता है। उन्होंने यह इतिहास सन् 1882 में आध्यत्म के सुनहरे पन्नों में लिखा था। उनके दिमांग में इस रथयात्रा का स्वप्न वृंदावन से पनपा। बताते हैं, बात 1882 की है। सेठा बैनीराम सदैव की भांति वृंदावन में निकलने वाली श्री रंगनाथन जी महाराज की शोभायात्रा देखने गए थे। बताते हैं, सेठी की बुग्गी पर सवार सारथी ने जब वृंदावन के रास्तों से जब भीड़ में आवाज लगाई कि हाथरस के नगर सेठ बैनीराम की सवारी है, कृपया रास्ता देदो! यह सुनकर भीड़ से किसी मन चले ने यह उत्तर दिया कि इतने ही बड़े सेठ हैं तो हाथरस में ही इतनी बड़ी शोभायात्रा क्यों नहीं निकलवा लेते। तिमंजिला रथयात्रा के पूर्व संचालक दुर्गाप्रसाद पौद्दार के सुपुत्र पुनित पौद्दार ने बताया कि बस इतनी सी बात सेठ जी को चुभ गई। बस हाथरस लौट कर सेठ को बात क्या चुभी, उन्होंने 15 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद ही तिमंजिला रथ को तैयार करा चैत्रीय नवरात्र की नवमीं तिथि को यह रथयात्रा निकलवा दी। 25 मार्च, 18 को यात्रा अपना 136 वां इतिहास दौराएगी।
रथयात्रा में सवार होते हैं मूछों वाले राम जीः-
यह बताने में कतई गुरेज नहीं होता कि हाथरस में ही केवल ऐसा इतिहास निकलकर सामने आता है जहां पर मूंछों वाले रामजी के दर्शन होते हैं। क्योंकि सेठ बैनराम द्वारा संचालित शोभायात्रा में रामजी का विग्रह मूंछों वाला है। यात्रा संचालकों द्वारा बताया जाता है कि पूरे उत्तर प्रदेश में हाथरस में ही केवल एकमात्र ऐसा विग्रह है जहां पर मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम का मूंछों वाला है।
शोभायात्रा के ठीक एक दिन पहले उन सभी रास्तों से काटे जाते हैं बिजली के तारः-
तिमंजिला रथ शोभयात्रा के लिए यह भी एक इतिहास बनता जा रहा है कि शोभायात्रा के लिए उन सभी मार्गों के विद्युत तारों को काट दिया जाता है, जहां से शोभायात्रा निकाली जाती है। क्योंकि शोभायात्रा इतनी ऊंची है कि बिना अरोधों को हटाए मार्गों पर शोभायात्रा का निकलना संभव नहीं हो सकता।
इन मार्गों से होकर निकलती है शोभायात्राः-
हाथरस के चामड़ गेट स्थित रथवाली बगीची से आरंभ होकर शोभायात्रा चामड़ गेट, सब्जीमंडी, नयागंज, बारहद्वारी, पत्थर बाजार, चौक सर्राफा, गुड़हाई बाजार, सासनी गेट क्रांतिचौक, सासनी गेट हनुमान चौक होते हुए बाग बैनीराम पहुंची है यह तिमंजिला रथयात्रा। यहां पर देर रात होती है विशाल आतिशाबाजी की प्रदर्शनी।
शोभायात्रा का मुख्य आकर्षण होता है महाकाली प्रदर्शः-
शोभायात्रा तो अपने आपमें ही ऐतिहासिकता का औहदा रखती है, लेकिन इसमें खासतौर से आकर्षण का केंद्र होता है महाकाली प्रदर्शन। अगर यह बोला जाए कि ब्रज प्रदेश में हाथरस का महाकाली प्रदर्शन अपने आपमें प्रमुखता रखता है गलत नहीं होगा।
हाथरस की प्रसिद्धी में शोभायात्रा का भी अहम रौलः-
ब्रज की द्वार देहरी हाथरस नगरी वैसे तो हींग, चाकू, रंग-गुलाल, महाकाली प्रदर्शन के अलावा कलम के सिपाही रहे काका हाथरसी, निर्भय हाथरसी के नाम से भी ‘हाथरस’ को जाना और पहचाना जाता है, लेकिन हाथरस की प्रसिद्धी में मूंछों वाले रामजी की तिमंजिला रथयात्रा भी एक अहम हिस्सा है।
संजय दीक्षित
ब्रजद्वार 25 मार्च। 1882 में ब्रजद्वार हाथरस के नगर सेठ द्वारा आरंभ की गई श्रीरामजन्म के उलक्ष्य में तिमंजिला रथयात्रा रविवार को अपने 136 वें इतिहास को गढ़ा। चामड़ गेट स्थित गमेल वाली (रथवाली) बगीची से बाग बैनीराम के लिए निकली मूछों वाले राम जी की तिमंजिला रथ को देखने के लिए भक्तों भीड़ उमड़ पड़ी उत्साह देखते ही बन रहा था।
कैसे गढ़ा गया इतिहास और इसका रचेयता कौन था ?
हाथरस में चैत्रीय नवरात्र की नवमीं तिथि को निकलने वाली श्रीरामजानकी तिमंजिला रथयात्रा का अपना एक अनुथ ही इतिहास है। इसके रचेयताओं में खासतौर से हाथरस के प्रसिद्ध और उदारवादी सेठ बैनीराम का नाम सामने आता है। उन्होंने यह इतिहास सन् 1882 में आध्यत्म के सुनहरे पन्नों में लिखा था। उनके दिमांग में इस रथयात्रा का स्वप्न वृंदावन से पनपा। बताते हैं, बात 1882 की है। सेठा बैनीराम सदैव की भांति वृंदावन में निकलने वाली श्री रंगनाथन जी महाराज की शोभायात्रा देखने गए थे। बताते हैं, सेठी की बुग्गी पर सवार सारथी ने जब वृंदावन के रास्तों से जब भीड़ में आवाज लगाई कि हाथरस के नगर सेठ बैनीराम की सवारी है, कृपया रास्ता देदो! यह सुनकर भीड़ से किसी मन चले ने यह उत्तर दिया कि इतने ही बड़े सेठ हैं तो हाथरस में ही इतनी बड़ी शोभायात्रा क्यों नहीं निकलवा लेते। तिमंजिला रथयात्रा के पूर्व संचालक दुर्गाप्रसाद पौद्दार के सुपुत्र पुनित पौद्दार ने बताया कि बस इतनी सी बात सेठ जी को चुभ गई। बस हाथरस लौट कर सेठ को बात क्या चुभी, उन्होंने 15 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद ही तिमंजिला रथ को तैयार करा चैत्रीय नवरात्र की नवमीं तिथि को यह रथयात्रा निकलवा दी। 25 मार्च, 18 को यात्रा अपना 136 वां इतिहास दौराएगी।
रथयात्रा में सवार होते हैं मूछों वाले राम जीः-
यह बताने में कतई गुरेज नहीं होता कि हाथरस में ही केवल ऐसा इतिहास निकलकर सामने आता है जहां पर मूंछों वाले रामजी के दर्शन होते हैं। क्योंकि सेठ बैनराम द्वारा संचालित शोभायात्रा में रामजी का विग्रह मूंछों वाला है। यात्रा संचालकों द्वारा बताया जाता है कि पूरे उत्तर प्रदेश में हाथरस में ही केवल एकमात्र ऐसा विग्रह है जहां पर मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम का मूंछों वाला है।
शोभायात्रा के ठीक एक दिन पहले उन सभी रास्तों से काटे जाते हैं बिजली के तारः-
तिमंजिला रथ शोभयात्रा के लिए यह भी एक इतिहास बनता जा रहा है कि शोभायात्रा के लिए उन सभी मार्गों के विद्युत तारों को काट दिया जाता है, जहां से शोभायात्रा निकाली जाती है। क्योंकि शोभायात्रा इतनी ऊंची है कि बिना अरोधों को हटाए मार्गों पर शोभायात्रा का निकलना संभव नहीं हो सकता।
इन मार्गों से होकर निकलती है शोभायात्राः-
हाथरस के चामड़ गेट स्थित रथवाली बगीची से आरंभ होकर शोभायात्रा चामड़ गेट, सब्जीमंडी, नयागंज, बारहद्वारी, पत्थर बाजार, चौक सर्राफा, गुड़हाई बाजार, सासनी गेट क्रांतिचौक, सासनी गेट हनुमान चौक होते हुए बाग बैनीराम पहुंची है यह तिमंजिला रथयात्रा। यहां पर देर रात होती है विशाल आतिशाबाजी की प्रदर्शनी।
शोभायात्रा का मुख्य आकर्षण होता है महाकाली प्रदर्शः-
शोभायात्रा तो अपने आपमें ही ऐतिहासिकता का औहदा रखती है, लेकिन इसमें खासतौर से आकर्षण का केंद्र होता है महाकाली प्रदर्शन। अगर यह बोला जाए कि ब्रज प्रदेश में हाथरस का महाकाली प्रदर्शन अपने आपमें प्रमुखता रखता है गलत नहीं होगा।
हाथरस की प्रसिद्धी में शोभायात्रा का भी अहम रौलः-
ब्रज की द्वार देहरी हाथरस नगरी वैसे तो हींग, चाकू, रंग-गुलाल, महाकाली प्रदर्शन के अलावा कलम के सिपाही रहे काका हाथरसी, निर्भय हाथरसी के नाम से भी ‘हाथरस’ को जाना और पहचाना जाता है, लेकिन हाथरस की प्रसिद्धी में मूंछों वाले रामजी की तिमंजिला रथयात्रा भी एक अहम हिस्सा है।

Bahut sundar ..
ReplyDeletedhabyabad
DeleteNice 👌
ReplyDeleteBhaut bhaya jay shree ram
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