दरियापुर के इस डॉक्टर ने देश के ऊपर कर दिया सबकुछ कुर्बान, आज के डॉक्टरों को सीखना चाहिए सबक
संजय दीक्षित
वंदेमातरम ‘‘वेदी पर शीश चढ़ाएंगे, जालिम सरकार मिटाएंगे’’ छैलबिहारी दीक्षित ‘कंटक’ की यह पंक्तियां बरबस ही उस महान सेनानी की याद दिला देती है। जिसने लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की विशेष उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया। वह महान व्यक्तित्व कोई और नहीं सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी डॉ.धनीराम ‘प्रेम’ थे। वह वक्त ही ऐसा था जब जलियांवाले बाग जैसे जघन्य कांड ने पूरे भारत को हिलाकर रख दिया था।
कैसे जुड़े स्वतंत्रता आंदोलन सेः-
यह उस वक्त की बात है जब अंग्रेज मानवीय संवेदनाओं को भूल गए थे। क्रांतिकारियों को अंडमान की नारकीय जेलों में भीषण यातनाएं दे रहे थे। उनको फांसी पर लटकाया जा रहा था। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से प्रभावित होकर यह महात्मागांधी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े और सक्रिय सेनानी की भूमिका में आ गए। क्रांतिकारियों चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराना और अंग्रजों के खिलाफ सक्रिय विरोध के चलते यह उनकी नजरों में चढ़गए। इसी के तहत डॉ.‘प्रेम’ की 1931 में एक वर्ष का कठोर करावास दिया गया। इस दौरान उसको कानपुर और फतेपुर की जेलों में रखकर कठोर यातनाएं दी गई। एक वर्ष के बाद इनको क्रांतिकारियों और सेनानियों की विशेष सेवा के लिए गुप्त स्थानों पर रखा गया।
क्या है डॉ.‘प्रेम’ का जीवन परिचयः-
सुख और संपन्नता को छोड़कर भारत मां की स्वतंत्रता के लिए आंधी के साथ आंदोलन में कूदे डॉ. धनीराम ‘प्रेम’ का जन्म हाथरस के थाना हाथरस जंक्शन क्षेत्र के गांव दरियापुर में 1904 में हुआ था। उस वक्त हाथरस अलीगढ़ की एक तहसील हुआ करता था। डॉ. ‘प्रेम’ के पिता जमुना प्रसाद क्षेत्र के जमीदार और संपन्न परिवार में से थे। डॉक्टर सहाब की प्राथमिक शिक्षा दरियापुर के बाद हाथरस के प्राथमिक विद्यालय में हुई। धर्मसमाज कॉलेज, अलीग़ढ़ व जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली में उच्च शिक्षा प्रप्त की। बाद में 1924 से 1928 तक नेशनल मेडीकल कॉलेज मुंबई से डॉक्टरेट की शिक्षा प्राप्त की। 1929 से 31 तक एडिनवरा व लंदन विश्वविद्यालय में एमआरपीएस, इंग्लैंड व एलआरसीपी, लंदन के अलावा डीटीएम एंड एच, इंग्लैंड से डॉक्टरेट की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
संजय दीक्षित
वंदेमातरम ‘‘वेदी पर शीश चढ़ाएंगे, जालिम सरकार मिटाएंगे’’ छैलबिहारी दीक्षित ‘कंटक’ की यह पंक्तियां बरबस ही उस महान सेनानी की याद दिला देती है। जिसने लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की विशेष उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया। वह महान व्यक्तित्व कोई और नहीं सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी डॉ.धनीराम ‘प्रेम’ थे। वह वक्त ही ऐसा था जब जलियांवाले बाग जैसे जघन्य कांड ने पूरे भारत को हिलाकर रख दिया था।
कैसे जुड़े स्वतंत्रता आंदोलन सेः-
यह उस वक्त की बात है जब अंग्रेज मानवीय संवेदनाओं को भूल गए थे। क्रांतिकारियों को अंडमान की नारकीय जेलों में भीषण यातनाएं दे रहे थे। उनको फांसी पर लटकाया जा रहा था। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से प्रभावित होकर यह महात्मागांधी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े और सक्रिय सेनानी की भूमिका में आ गए। क्रांतिकारियों चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराना और अंग्रजों के खिलाफ सक्रिय विरोध के चलते यह उनकी नजरों में चढ़गए। इसी के तहत डॉ.‘प्रेम’ की 1931 में एक वर्ष का कठोर करावास दिया गया। इस दौरान उसको कानपुर और फतेपुर की जेलों में रखकर कठोर यातनाएं दी गई। एक वर्ष के बाद इनको क्रांतिकारियों और सेनानियों की विशेष सेवा के लिए गुप्त स्थानों पर रखा गया।
क्या है डॉ.‘प्रेम’ का जीवन परिचयः-
सुख और संपन्नता को छोड़कर भारत मां की स्वतंत्रता के लिए आंधी के साथ आंदोलन में कूदे डॉ. धनीराम ‘प्रेम’ का जन्म हाथरस के थाना हाथरस जंक्शन क्षेत्र के गांव दरियापुर में 1904 में हुआ था। उस वक्त हाथरस अलीगढ़ की एक तहसील हुआ करता था। डॉ. ‘प्रेम’ के पिता जमुना प्रसाद क्षेत्र के जमीदार और संपन्न परिवार में से थे। डॉक्टर सहाब की प्राथमिक शिक्षा दरियापुर के बाद हाथरस के प्राथमिक विद्यालय में हुई। धर्मसमाज कॉलेज, अलीग़ढ़ व जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली में उच्च शिक्षा प्रप्त की। बाद में 1924 से 1928 तक नेशनल मेडीकल कॉलेज मुंबई से डॉक्टरेट की शिक्षा प्राप्त की। 1929 से 31 तक एडिनवरा व लंदन विश्वविद्यालय में एमआरपीएस, इंग्लैंड व एलआरसीपी, लंदन के अलावा डीटीएम एंड एच, इंग्लैंड से डॉक्टरेट की उच्च शिक्षा प्राप्त की।

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