Skip to main content

देश के प्रथम राष्ट्रपति को भारत रत्न भी नहीं विदेशी धरती पर बनाई थी स्वदेशी सरकार, अंग्रेजों को हिला कर रख दिया था हाथरस के राजा ने

श्री गणेशाय नमः
राजा महेंद्रप्रताप सिंह
देश के प्रथम राष्ट्रपति को भारत रत्न भी नहीं
विदेशी धरती पर बनाई थी स्वदेशी सरकार, अंग्रेजों को हिला कर रख दिया था हाथरस के राजा ने
संजय दीक्षित
जिसने देश की आजादी के लिए विदेश में बैठकर आजाद हिन्द सरकार बनाई। कई बार जीवन को देश के हितार्थ संकटों में डाला। पत्नी छोड़ी, परिवार छोड़ा और अपार कष्ट सहे। अफगान और जापान से आजाद हिन्द सेना बनाकर अंग्रेजों पर आक्रमण किए। उनके लोहे से थर्राए अंग्रेजों ने अपने हथियार डाले और देश का विभावन रूपी दंश दिया। अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। भले ही वह देश के खजाने को लूट कर ले गए, लेकिन मजबूरन ही सही भारत को अंग्रेजों ने छोड़ा और 15 अगस्त रूपी राष्ट्रीय पर्व मनाने का अधिकार मिला। दुखद यह है कि देश की आजादी के प्रमुख पंक्ति में आने वाली इस महान शख्सियत को राजनीतिक स्वार्थ परकता के चलते ‘‘भारत रत्न’’ जैसी उपाधी से भी नहीं नमाजा जा सका है। भले ही भारत में राजा महेंद्रपता सिंह को भारत रत्न की उपाधी नहीं मिल सकी हो, लेकिन राजा सहाब भारत के ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के नायाव हीरे हैं जिनको हम प्रणाम करते हैं।
इतिहास के पन्नों को पलटें तो देश के लिए न जाने कितने सेनानियों ने बलिदान दिया वह बलिदान ही आज हमारी आजादी का सच्चा सबब है, लेकिन पूछों उन वीरों की यादों से जिन्होंने जिन्दा रहकर के भी अपने जीवन में हजरों बार मौत का कष्ट सहा और अपने लहू से आजादी की इवारत लिख डाली। इस इवारत लिखने वालों में ही प्रथम पंक्ति के सदस्य हैं राजा महेंद्रप्रताप सिंह। जिनका जन्म अगहन सुदी संवत् 1943 (01 दिसंबर 1986) में मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के यहां पर हुआ था। जबकि हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के यहां पर बतौर दत्तकपुत्र गोद लिए गए थे। जिनकी प्रारंभिक शिक्षा हाथरस में ही हुई और आगे की पढ़ाई के लिए वह अलीगढ़ पहुंचे। अलीगढ़ से ही हाईस्कूल में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद बीए की प्रथम वर्ष की शिक्षा मोहम्मदन ओरिऐंटल कॉलेज में प्राप्त की, लेकिन देश की आजादी की जंग के चलते आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। इसी दौरान उनका विवाह महाराजा जिंद की छोटी बहन बलवीर कौर से हुआ। इसके बाद से ही आप देश की आजादी के लिए लड़ी जा रही जंग में कूद पड़े।
राजा महेंद्रप्रताप सिंह ही ने दिया था देश में प्रथम वार स्वदेशी का नाराः-
इतिहास के पन्नों से उकेरी इस सच्चाई को देखें तो पता चलता है कि 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता सम्मेलन में राजा सहाब शामिल हुए और सर्वप्रथम राजा महेंद्रप्रताप ने ही स्वीदेशी का नारा दिया। उन्हीं के आह्वान पर कलकत्ता में विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई और स्वदेशी स्वाधीनता की शपथ ली गई। 1914 में राजा महेंद्रप्रताप सिंह ने देहरादून में राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से मुलाकात की और विदेशों में रहकर देश की आजादी का निश्चय किया। इसी वर्ष 17 अगस्त को वह अपनी रानी को रोते-बिलखते छोड़कर चल दिए। रानी ने जब पूछा कि अब कब मिलोगे तो उत्तर था कि जब अफगान सेनाएं साथ होंगी। वह बिना पासपोर्ट के ही इटालियन जहाज से लंदन के लिए रवाना हो गए। जहां से स्वीट्जरलैंड, इटली होते हुए जर्मनी पहुंचे। जहां पर उनकी मुलाकात कैसर से हुई और उनका सम्मान किया गया। यहां पर अन्य देशभक्तों से मुलाकात के बाद वह 2 अक्तूबर, 1915 को अफकानिस्तान पहुंच गए। जहां के बादशाह ने उनका शाही मेहमान के रूप में स्वागत किया।
जहां पर 1916 के प्रारंभ में ही राजा महेंद्रप्रताप ने काबुल में ‘‘प्रोवीजन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया’’ (आजाद हिन्द सरकार) की स्थापना की प्रथम राष्ट्रपति बने। जहां पर उन्होंने छह हजार अफगान सैनिकों की एक सेना को संगठित कर अंग्रेजी सरकार पर आक्रमण किया। इसमें भले ही वह पूरी तरह से सफल नहीं रहे, लेकिन अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया। इसके बाद वह अफगानिस्तान से जापान गए। जहां पर भी उन्होंने पुनः ‘‘आजाद हिन्द सेना’’ की स्थापना की और जापन से मिलकर अंग्रेजों पर आक्रमण किए, लेकिन पूर्ण सफलता नहीं मिली।
अंग्रेजों ने किया था राजा महेंद्रप्रताप को राजद्रोही घोषितः-
राजा महेंद्रप्रताप सिंह की क्रांतकारी गतिविधियों थर्राए अंग्रेजों ने उनको परेशान करने के लिए सन 1923 की वायसराय कौंसिल में अंग्रेजी सरकार की ओर से राजा महेंद्रप्रताप सिंह को ‘बागी’ व ‘राजद्रोही’ घोषित कर दिया गया। जिसके चलते उनकी देहरादून , मुरसान और अलीगढ़ की संपत्ति को जब्त कर लिया, लेकिन राजा महेंद्रप्रताप ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया। राजा सहाब पुनः जर्मनी गए। जहां से तुर्की और फिर बगदाद होते हुए अफगानिस्तान पहुंचे। इसके बाद रोम्यां में रोली से मिले, सोवियत रूस जाकर क्रेमिलिन में लेनिन से मिले। वह लगातार विदेशियों से सहयोग कर अंग्रेजी सरकार को भगाने में लगे रहे। इधर, 1925 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया।
पं.जवाहरलाल नेहरू ने राजा सहाब से मुलाकात को माना था अपना सौभाग्यः-
1926 में जेनेवा की यात्रा के वक्त राजा महेंद्रप्रताप से पं.जवाहरलाल नेहरू ने मुलाकात की। पंड़ित जी ने अपनी किताब ‘मेरी कहानी’ में खि है ‘‘जेनेवा में राजा महेंद्रप्रताप से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। उनको देखते ही में भारी आश्चर्य में पड़ गया था। वह विदेशों में घूम कर देश की आजादी के लिए प्रयास कर रहे थे। उनकी पोशाक बड़ी विचित्र थी’’। राजा महेंद्रप्रताप 1946-47 में स्वदेश लौटे। 29 अपै्रल, 1979 को देश का यह महान सपूत चिरनिंद्रा में सो गया।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

‘‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसत और तिलक लैत रघुवीर।।’’

हनुमान जी की कृपा से गुसांई बाबा को चित्रकूट के घाट पर प्रभु के दर्शन होते हैंःगौरांग जी महाराज UP Hathras11 जून, 18। चित्रकूट का घट है और गोस्वामी बाबा पथर की एक सिला पर चंदन घिर रहे हैं। कथा प्रवचन करते व्यासपीठ गौरांग जी महाराज इंतजार कर रहे हैं कि कब उनके स्वामी आएंगे और मिलन होगा। अचानक वहां पर दो सुकुमार आते हैं और तुलसीदास से चंदन की मांग करते हैं, लेकिन प्रभु मिलन की आस में वह दोनों ही सुकुमारों से चंदन की मना करते हैं। महावीर जो देख रहे थे पहचान गए कि अभी भी तुलसीदास स्वामी को नहीं पहचान रहे। श्री रामदबार मंदिर में चल रही भक्तमाल कथा श्रवण करते श्रद्धालुजन कथा श्रवण करते बैंक अधिकारी कथा के दौरान आचार्य गौरांग जी महाराज इस मार्मिक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि कहीं फिर से तुलसीदास प्रभु दर्शन से न चूक जाएं। इसलिए पेड़ की एक डाल पर तोते का रूप धर कर हनुमान जी कथा श्रवण करते सेवानिवृत्त रोडवेज अधिकारी कहते हैं ‘‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसत और तिलक लैत रघुवीर।।’’ यह दोहा सुनते ही गोस्वामी तुलसीदास का ज्ञानतंत्र जाग्रित हुआ। ध...

हर दिन डेढ सजा का लक्ष्य किया तय

हर दिन सुनाई गई डेढ़ सजा - पुलिस के साथ अभियोजन ने 716 आरोपियों को सुनाई सजा - पूरे साल में 556 मामलों में सुनाई गई सजा - बकौल एसपी चिरंजीव नाथ सिंहा, आगे और बहतर करने का होगा प्रयाश हाथरस। पुलिस ने अभियोजन के साथ मिलकर 360 दिन में 556 सजाओं के माध्यम से 716आरोपियों को अभियुक्त सिद्ध कर के जेल का रास्ता दिखाया है। अगर यह कहा जाए कि हर दिन पुलिस और अभियोजन ने मिल कर डेढ़ सजा का आंकड़ा तय किया है तो गलत नहीं होगा क्योंकि साल में 360 दिन होते हैं और सजा 556 सुनाई गई है।इससे सीधा-सीधा आंकड़ा निकलता है एक दिन में डेढ़ सजा का मापदंड तप किया गया है।हालांकि यह आंकड़ा इतना अच्छा भी नहीं है, मगर आने वाले दिनों में इसको और सुधारा जा सकता है। बीते समय से सबक लेने की आवश्यकता है कि कहां पर चूक हुई है।क्योंकि कहीं ना कहीं पुलिस गवाहों के होस्टाइल होने के कारण ही आरोपी कोअभियुक्त सिद्ध नहीं कर पाती और वह सजा से वंचित रह जाते हैं ।इसलिए यह कहना फक्र की बात है कि पुलिस ने मेहनत करते हुए हर दिन एक से ज्यादा सजा का लक्ष्य तय किया है इधर, अभियोजन ने भी रात दिन एक करते हुए अपने कार्य को अंजाम द...

हाथरस की यह मजबूरी सिर्फ 35 किमी की दूरी

हाथरस की यह मजबूरी सिर्फ 35 किमी की दूरी -बाहरी प्रत्याशियों का दंश झेलता आ रहा है हाथरस -1984 तक कांगे्रस पर महरवान रही हाथरस की तनजा तो 1991 से भाजपा के प्रत्याशी को ही चुन कर संसद भेज रही जनता  संजय दीक्षित हाथरस। ‘‘अरे हाय हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी, मुझ पल पल है तड़फाये एक दिना......’’ फिल्म ‘‘रोटी कपड़ा और मकान’’ के गाने के यह बोल लोकसभा हाथरस पर भी सटीक बैठते हैं। क्योंकि क्षेत्र की समस्या व लोगों की पीड़ा के निराकरण को अब तक हुए लोकतंत्र के 17 समरों को प्रतिनिधित्व 17 में 12 वार वाहरी लोगों को सौंपा गया है। मजे की बात तो यह है कि यह 18 लोकतंत्र के इस यज्ञ में 18 वीं वार भी आहूतियां देने के लिए लोकल प्रत्याशियों का पूर्णतः अभाव दिखाई दे रहा है। हाथरस के प्रथम सांसद नरदेव स्नातक को दुर्लभ चित्र यह हाथरस की पीड़ा ही कही जा जा सकती है कि लोकसभा के लिए यहां के मतदाताओं को अब तक 17 वार हुए मतदान में 12 वार वाहरी प्रत्याशियों को सांसद बनाकर लोकसभा भेजा है। लोगों के बोलों से निकली बातों पर जाएं तो यह सबसे बड़ी पीड़ा है कि हर विधानसभा और लोकसभा का एक अलग-अलग भौगो...