युपी के इस शहर में बच्चा जन्म लेते ही बन जाता है ‘गुरु’, इस शहर पर बरसता है दो माताओं का प्यार, जहां पर शिव ने निकाला था हाथ से रस, यहीं से शुरू हो जाता है ब्रज
संजय दीक्षित
हाथरस 06 अपै्रल। यूपी में एक शहर ऐसा भी है जहां जन्म लेते ही बच्चा गुरु बन जाता है। इस शहर के जन्म का ताल्लुक भी द्वापर युग में श्री कृष्ण जन्म के वृतांत से जुड़ा है। कहा जाता है कि इस शहर में मां पार्वती की बैठक है। भगवान शिव नंदोत्सव में जाते वक्त मां पार्वती को यहीं पर विश्राम दिला कर गए थे। इसलिए प्राचीनकाल से ही इस शहर को ब्रजद्वार के नाम की संज्ञा दी गई है। विद्वजनों की माने तो इस का वृतांत भी ब्रह्म वैवर्त पुराण में मिलता है।
जहां से भगवान शिव ने मां पार्वती की प्यास बुझाने के लिए हाथ से जल निकाला था। जिस स्थान को स्वयं शिव ने ब्रज का द्वार माना था। जहां पर स्वयं साक्षत मां पार्वती का वास है। हाथ से रस निकालने के कारण इस शहर को साहित्यिक नाम मिला ‘‘हाथरस’’ हाथरस एक ऐतिहासिक नाम है। रस की नगरी ‘‘हाथरस’’ के बड़े भाई के रूप में ‘‘बनारस’’ को स्थान मिला है। दोनों ही नगरी आध्यात्म से जु़ड़ी हैं दोनों ही शिव की नगरी हैं। दोनों पर शिव कृपा बरसती है, लेकिन यहां पर दो-दो माताओं का आशीर्वाद बरसता है। यहां माता पर्वती की बैठक है जिसे आज भी हाथुरसी के नाम से जाना जाता है और दूसरी माता हैं मां रेवती। भागवत में भी यह प्रसंग आता है कि यमुना उल्ली पार श्रीकृष्ण की किलोल भूमि है। जबकि यमुना पल्लीपार यानि राया, हाथरस आदि क्षेत्र में माता रेवती बलदाऊ के साथ बिराजित हैं। हाथरस में दाऊ का लक्खी मेला इसका प्रमाण है। कहावत है कि ‘‘दाऊ दाऊ सब कहें, मैया कहे न कोय। दाऊ के दरबार में मैया कहे सो होय।।’’
चूंकि हाथरस शिव नगरी है और शिव प्रथम गुरु के रूप में माने जाते हैं। इस लिए यहां पर सम्मान के रूप में गुरु शब्द को सहज ही प्रयोग कर लिया जाता है। गुरु शिष्टाचार का शब्द है, गुरु सम्मान का शब्द है, गुरु ज्ञान का शब्द है। क्योंकि गुरु शब्द ज्ञान का बोध कराता है ? इस लिए बनारस और हाथरस में गुरु शब्द का प्रचलन सुनने को प्राया आसानी से मिल जाता है, लेकिन ‘‘हाथरस’’ तो मानों गुरु परंपरा से रचा-बसा है। यही कारण है कि गुरु परंपरा से ओतप्रोत ब्रज की द्वार देहरी में गुरु शब्द को हर कोई सहजता से लेता है और बिना किसी परहेज के एक-दूसरे को ‘गुरु’ शब्द से संबोधन करते हुए यहां के लोग सम्मान प्रदान करते हैं। मसलन इन वाक्यों से हम यह अवगत करा सकते हैं कि सहज और सरल भाषा में कैसे गुरु शब्द का प्रयोग करते हैं हाथरस वाले कहते हैं कि ‘क्या हाल चाल हैं गुरु’ मतलब गुरु विप्रों को माना जाता है, गुरु कुल पुरोहित होता है, गुरु यज्ञा चार होता है, लेकिन हाथरस में बिना किसी भेदभाव, बिना किसी जातिपांति सभी को गुरु शब्द से नवाज दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर ‘आओ गुरु बहुत दिन हो गए दर्शन नहीं दे रहे’, ‘गुरु रिक्शा खाली है क्या ?’, ‘हम तो बड़ी समस्या में फंस गए गुरु’, ‘चल रहे एओ का गुरु’, ‘चाय पी लेओ गुरु’, ‘खानो खाय लेओ गुरु’ अर्थात उठत गुरु, बैठत गुरु, चलत गुरु, बोलत गुरु हर समय सामान्य भाषा में हर किसी से कभी भी और कहीं भी गुरु शब्द का प्रयोग हाथरस की शाब्दिक परंपरा बन गई है। कहात को माने तो जब बच्चा जन्म लेता है तो उसको भी यहां के लोग बातों ही बातों में गुरु शब्द से जनवाज देते हैं अर्था वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करते हैं ‘आय गए गुरु’, ‘अब तो हमारी-तुम्हारी खुब जमेगी गुरु’। हालांकि इस गुरु शब्द की परंपरा का इतिहास उठा कर देखें तो द्वापर के श्रीकृष्ण जन्म से जाकर जुड़ती है।
हाथरस 06 अपै्रल। यूपी में एक शहर ऐसा भी है जहां जन्म लेते ही बच्चा गुरु बन जाता है। इस शहर के जन्म का ताल्लुक भी द्वापर युग में श्री कृष्ण जन्म के वृतांत से जुड़ा है। कहा जाता है कि इस शहर में मां पार्वती की बैठक है। भगवान शिव नंदोत्सव में जाते वक्त मां पार्वती को यहीं पर विश्राम दिला कर गए थे। इसलिए प्राचीनकाल से ही इस शहर को ब्रजद्वार के नाम की संज्ञा दी गई है। विद्वजनों की माने तो इस का वृतांत भी ब्रह्म वैवर्त पुराण में मिलता है।
जहां से भगवान शिव ने मां पार्वती की प्यास बुझाने के लिए हाथ से जल निकाला था। जिस स्थान को स्वयं शिव ने ब्रज का द्वार माना था। जहां पर स्वयं साक्षत मां पार्वती का वास है। हाथ से रस निकालने के कारण इस शहर को साहित्यिक नाम मिला ‘‘हाथरस’’ हाथरस एक ऐतिहासिक नाम है। रस की नगरी ‘‘हाथरस’’ के बड़े भाई के रूप में ‘‘बनारस’’ को स्थान मिला है। दोनों ही नगरी आध्यात्म से जु़ड़ी हैं दोनों ही शिव की नगरी हैं। दोनों पर शिव कृपा बरसती है, लेकिन यहां पर दो-दो माताओं का आशीर्वाद बरसता है। यहां माता पर्वती की बैठक है जिसे आज भी हाथुरसी के नाम से जाना जाता है और दूसरी माता हैं मां रेवती। भागवत में भी यह प्रसंग आता है कि यमुना उल्ली पार श्रीकृष्ण की किलोल भूमि है। जबकि यमुना पल्लीपार यानि राया, हाथरस आदि क्षेत्र में माता रेवती बलदाऊ के साथ बिराजित हैं। हाथरस में दाऊ का लक्खी मेला इसका प्रमाण है। कहावत है कि ‘‘दाऊ दाऊ सब कहें, मैया कहे न कोय। दाऊ के दरबार में मैया कहे सो होय।।’’
चूंकि हाथरस शिव नगरी है और शिव प्रथम गुरु के रूप में माने जाते हैं। इस लिए यहां पर सम्मान के रूप में गुरु शब्द को सहज ही प्रयोग कर लिया जाता है। गुरु शिष्टाचार का शब्द है, गुरु सम्मान का शब्द है, गुरु ज्ञान का शब्द है। क्योंकि गुरु शब्द ज्ञान का बोध कराता है ? इस लिए बनारस और हाथरस में गुरु शब्द का प्रचलन सुनने को प्राया आसानी से मिल जाता है, लेकिन ‘‘हाथरस’’ तो मानों गुरु परंपरा से रचा-बसा है। यही कारण है कि गुरु परंपरा से ओतप्रोत ब्रज की द्वार देहरी में गुरु शब्द को हर कोई सहजता से लेता है और बिना किसी परहेज के एक-दूसरे को ‘गुरु’ शब्द से संबोधन करते हुए यहां के लोग सम्मान प्रदान करते हैं। मसलन इन वाक्यों से हम यह अवगत करा सकते हैं कि सहज और सरल भाषा में कैसे गुरु शब्द का प्रयोग करते हैं हाथरस वाले कहते हैं कि ‘क्या हाल चाल हैं गुरु’ मतलब गुरु विप्रों को माना जाता है, गुरु कुल पुरोहित होता है, गुरु यज्ञा चार होता है, लेकिन हाथरस में बिना किसी भेदभाव, बिना किसी जातिपांति सभी को गुरु शब्द से नवाज दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर ‘आओ गुरु बहुत दिन हो गए दर्शन नहीं दे रहे’, ‘गुरु रिक्शा खाली है क्या ?’, ‘हम तो बड़ी समस्या में फंस गए गुरु’, ‘चल रहे एओ का गुरु’, ‘चाय पी लेओ गुरु’, ‘खानो खाय लेओ गुरु’ अर्थात उठत गुरु, बैठत गुरु, चलत गुरु, बोलत गुरु हर समय सामान्य भाषा में हर किसी से कभी भी और कहीं भी गुरु शब्द का प्रयोग हाथरस की शाब्दिक परंपरा बन गई है। कहात को माने तो जब बच्चा जन्म लेता है तो उसको भी यहां के लोग बातों ही बातों में गुरु शब्द से जनवाज देते हैं अर्था वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करते हैं ‘आय गए गुरु’, ‘अब तो हमारी-तुम्हारी खुब जमेगी गुरु’। हालांकि इस गुरु शब्द की परंपरा का इतिहास उठा कर देखें तो द्वापर के श्रीकृष्ण जन्म से जाकर जुड़ती है।

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