परिवार के साथ किए अधिवक्ता ने मां के श्रृंगार, क्योंकि मां की कृपा का शानी है अधिवक्ता परिवार
संजय दीक्षित
हाथरस 18 अप्रैल। एक कानून के पैहरी को मौका मिला तो उसने मां का श्रृंगार तो किया ही लेकिन इतनी तल्लीनता और अपने पूरे परिवार को साथ लेकर जो श्रृंगार किया कि मां की छटा देखते ही बनती थी। जो मां करनी का फल देती है, जो मां अपने आंचल की छांव से सारे दुख हर लेती है। अगर ऐसा मौका मिले तो भला कौन छोड़ना चाहेगा मां के श्रृंगार का अवसर।
यह कहावत है कि जो भी मां के दरबार में जाता है और पूरी निष्ठा व आस्था के साथ मां बौहरे वाली के दरबार में अपनी हाजरी लगाता है, वह कभी खाली हाथ नहीं आता। दिल्ली से करीब 200 किलो मीटर की दूरी पर बसा हाथरस शहर जो पहले कभी मुरसान रिसायत का और बाद में अलीगढ़ जिले का अंग हुआ करता था। उस ऐतिहासिक नगरी जिसको ब्रज के द्वार से भी जाना जाता है। ‘ब्रम्ह वैवर्त पुराण’ में यह जिक्र आता है कि हाथरस की सीमा से ही ब्रज का आरंभ होता है। इस नगरी में हर कौने और क्षेत्र में मां का बास है। मां की कृपा का सांची रहा यह शहर ब्रज की द्वार देहरी यानि हाथरस नगरी में ‘मां बौहरे वाली देवी’ का भी अपना एक अद्वतीय स्थान है।
कैसे मिला एक वकील को मां के श्रृंगार का मौकाः-
अगर मिली जानकारी की बात करें तो हाथरस के मुरसान गेट स्थित रहने वाले अधिवक्ता कपिल मोहन गौड़। संघर्ष और कर्मठ व्यक्तित्व के धनी हैं। जहां तक जानकारी है, वह शुरू से ही अपनी जिम्मेदारियों के पैहरी रहे हैं। अपने अधिवक्ता पिता की असमय देहावसान होने के बाद जननी मां की कृपा से अप एक छोटी सी उम्र में ही उन्होंने मेहनत और लगन के साथ जिम्मेदारियों का निर्भहन किया। बहुत से ऐसे पल आए जब उन्होंने मां बौहरे वाली के दरबार में अरज लगाई तो मां की कृपा बरसी और कार्य भी हुए। आस्था का ऐसा सिलसिला चला कि मां के बहुत से चमत्कार अधिवक्ता कपिल मोहन गौड़ की जिंदगी में बिना अक्षर और कलम के ही छप गए। मां की आस्था और विश्वास का यह सिला मिला की उनको मां बौहरे वाली के श्रृंगार करने का मौका पूरे परिवार के साथ मिला। कहा जाता है जिस भक्त को यह अवसर मिलता है उसका हर तरीके से उद्धार होता है।
इतिहास के पन्नों को झरोखाः-
अगर इतिहास के पन्नों में झांके तो मां बौहरे वाली का अपना एक आस्था का इतिहास है। बरसों से क्षेत्र में आस्था का केंद्र बनी मां बौहरे वाली का दरबार हाथरस के मुख्य स्थल घंटाघर से पश्चिम दिशा की ओर करीब डेढ़ किलो मिटर आगे है। मुरसान गेट क्षेत्र में बना मां का दरबार बैसे तो अपने आप में काफी पुराना है, लेकिन मां के चमत्कारों से भरे इतिकास का यह सिला है कि अब यह क्षेत्र मां के नाम से ही जाना जाता है। यह ही नहीं मां के दरबार में हर सोमवार मेला लगता है और आलौकिक श्रृंगार के दर्शन होते हैं। जबकि नवरात्रों में तो मां की आलौकिक कृपा की छटा हर पल और हर क्षण बरसती है। मां के संबंध में जितना लिखा जाए थोड़ा ही साबित होगा। अगर यह कहा जाय कि प्यासा जानता है पानी की कीमत, भूखा जानता है भोजन की कीमत। इसी प्रकार एक दुखियारा और परेशान जानता है कि मां बोरहे वाली की कृपा क्या होती है, लेकिन उसके दरबार में हाजरी लगानी पड़ती है।

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