Skip to main content

इस सेनानी ने स्वीकारी अंग्रेजों की तकलीफें, लेकिन मुंह नहीं मोड़ा देश के स्वतंत्रता संग्राम से

संजय दीक्षित
हाथरस 04 अपै्रल। ‘‘आजादी की दीप जलाने इस धरती पर आए हैं, हे मानस के राजहंस हम मर्यादय को भाए हैं। जब जब जिक्र धरा पर होंगे हम मानव मतवालों के, वंदेमारतम कहने नहीं झिझकेंगे बच्चे भारत वालों के।।’’ कुछ इसी प्रकार के जोशीले देशभक्ति के गीतों को गुनगुनाने वाले देश के सच्चे सिपाही दीपचंद्र की आजादी की गाधा को याद दिलाते हैं।
आजादी के वक्त तहसील सादाबाद के गांव ताजपुर में जन्मे एक देश के सच्चे सपूत ने कुछ इसी प्रकार अंग्रेजों से लोहा लेने की ठानी थी और अंग्रेजी राज की दी हुई सौगात को ठुकराकर आजादी के लड़ाई में कूप पड़े थे। इन वक्त हाथरस तहसील में आने वाले कस्बा मुरसान के गांव ताजपुर में जन्म इस सपूत का नाम दीपचंद्र था। अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए दीपचंद्र ने वैसे अपनी पारी की शुरूआत तो 1932 से ही कर दी थी, लेकिन 1941 के वक्त जब व्यक्तिगत आंदोलन शुरू हुआ तो वह पूरी तरह मां भारती के लाल के रूप में अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए गौरों से भीड़ने से नहीं चूके।
1941 में हुए व्यक्तिगत आंदोलन में यह पूरी तरह से अंग्रेजों की नजरों में चढ़ गए। इनको तताम प्रलाभन भी दिए गए, लेकिन मातृभूमि के सामने दीपचंद्र ने सभी कुर्बान कर दिया और देश के एक सच्चे सपूत की तरह अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े रहे। अंत में अंग्रेजी पुलिस ने इनको 24 अपै्रल, 41 को अरेस्ट कर लिया और इन पर मुकदमा चलाया गया। जिसमें इनको दोषी करार देते हुए अंग्रेजी अदालत ने एक वर्ष की सजा और पचास रुपये बतौर जुर्माना घोषित किया। जिसको उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और जेल चले गए। 26 अपै्रल, 42 को यह मुक्त हुए और फिर से देश की आजादी के लिए चल रही जंग में घुलमिल गए। तमाम तकलीफों को सहन करते हुए यह आजादी की लड़ाई से नहीं डिगे। इसके लिए इनके परिजनों को भी अंग्रेजों ने तमाम प्रकार से परेशान किया, लेकिन यह पूरा परिवार अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुआ और परिणामस्वरूप आज जो आजादी की आव-ओ-हवा है उसमें जीने का मौका मिला।


Comments

Popular posts from this blog

‘‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसत और तिलक लैत रघुवीर।।’’

हनुमान जी की कृपा से गुसांई बाबा को चित्रकूट के घाट पर प्रभु के दर्शन होते हैंःगौरांग जी महाराज UP Hathras11 जून, 18। चित्रकूट का घट है और गोस्वामी बाबा पथर की एक सिला पर चंदन घिर रहे हैं। कथा प्रवचन करते व्यासपीठ गौरांग जी महाराज इंतजार कर रहे हैं कि कब उनके स्वामी आएंगे और मिलन होगा। अचानक वहां पर दो सुकुमार आते हैं और तुलसीदास से चंदन की मांग करते हैं, लेकिन प्रभु मिलन की आस में वह दोनों ही सुकुमारों से चंदन की मना करते हैं। महावीर जो देख रहे थे पहचान गए कि अभी भी तुलसीदास स्वामी को नहीं पहचान रहे। श्री रामदबार मंदिर में चल रही भक्तमाल कथा श्रवण करते श्रद्धालुजन कथा श्रवण करते बैंक अधिकारी कथा के दौरान आचार्य गौरांग जी महाराज इस मार्मिक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि कहीं फिर से तुलसीदास प्रभु दर्शन से न चूक जाएं। इसलिए पेड़ की एक डाल पर तोते का रूप धर कर हनुमान जी कथा श्रवण करते सेवानिवृत्त रोडवेज अधिकारी कहते हैं ‘‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसत और तिलक लैत रघुवीर।।’’ यह दोहा सुनते ही गोस्वामी तुलसीदास का ज्ञानतंत्र जाग्रित हुआ। ध...

हर दिन डेढ सजा का लक्ष्य किया तय

हर दिन सुनाई गई डेढ़ सजा - पुलिस के साथ अभियोजन ने 716 आरोपियों को सुनाई सजा - पूरे साल में 556 मामलों में सुनाई गई सजा - बकौल एसपी चिरंजीव नाथ सिंहा, आगे और बहतर करने का होगा प्रयाश हाथरस। पुलिस ने अभियोजन के साथ मिलकर 360 दिन में 556 सजाओं के माध्यम से 716आरोपियों को अभियुक्त सिद्ध कर के जेल का रास्ता दिखाया है। अगर यह कहा जाए कि हर दिन पुलिस और अभियोजन ने मिल कर डेढ़ सजा का आंकड़ा तय किया है तो गलत नहीं होगा क्योंकि साल में 360 दिन होते हैं और सजा 556 सुनाई गई है।इससे सीधा-सीधा आंकड़ा निकलता है एक दिन में डेढ़ सजा का मापदंड तप किया गया है।हालांकि यह आंकड़ा इतना अच्छा भी नहीं है, मगर आने वाले दिनों में इसको और सुधारा जा सकता है। बीते समय से सबक लेने की आवश्यकता है कि कहां पर चूक हुई है।क्योंकि कहीं ना कहीं पुलिस गवाहों के होस्टाइल होने के कारण ही आरोपी कोअभियुक्त सिद्ध नहीं कर पाती और वह सजा से वंचित रह जाते हैं ।इसलिए यह कहना फक्र की बात है कि पुलिस ने मेहनत करते हुए हर दिन एक से ज्यादा सजा का लक्ष्य तय किया है इधर, अभियोजन ने भी रात दिन एक करते हुए अपने कार्य को अंजाम द...

हाथरस की यह मजबूरी सिर्फ 35 किमी की दूरी

हाथरस की यह मजबूरी सिर्फ 35 किमी की दूरी -बाहरी प्रत्याशियों का दंश झेलता आ रहा है हाथरस -1984 तक कांगे्रस पर महरवान रही हाथरस की तनजा तो 1991 से भाजपा के प्रत्याशी को ही चुन कर संसद भेज रही जनता  संजय दीक्षित हाथरस। ‘‘अरे हाय हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी, मुझ पल पल है तड़फाये एक दिना......’’ फिल्म ‘‘रोटी कपड़ा और मकान’’ के गाने के यह बोल लोकसभा हाथरस पर भी सटीक बैठते हैं। क्योंकि क्षेत्र की समस्या व लोगों की पीड़ा के निराकरण को अब तक हुए लोकतंत्र के 17 समरों को प्रतिनिधित्व 17 में 12 वार वाहरी लोगों को सौंपा गया है। मजे की बात तो यह है कि यह 18 लोकतंत्र के इस यज्ञ में 18 वीं वार भी आहूतियां देने के लिए लोकल प्रत्याशियों का पूर्णतः अभाव दिखाई दे रहा है। हाथरस के प्रथम सांसद नरदेव स्नातक को दुर्लभ चित्र यह हाथरस की पीड़ा ही कही जा जा सकती है कि लोकसभा के लिए यहां के मतदाताओं को अब तक 17 वार हुए मतदान में 12 वार वाहरी प्रत्याशियों को सांसद बनाकर लोकसभा भेजा है। लोगों के बोलों से निकली बातों पर जाएं तो यह सबसे बड़ी पीड़ा है कि हर विधानसभा और लोकसभा का एक अलग-अलग भौगो...