जब मंदर पर्वत डूबने लगा तो विष्णु ने लिया था कच्छप अवतार, रविवार को है कच्छप जयंती
संकलन
संजय दीक्षित
UP (India) 28 April। जब मंदर पर्वत डिगने लगा तो भगवान हरीहरि विष्णु ने कूर्म यानि कच्छप अवतार धारण किया और समुंद्रमंथन को पूर्ण कराया था। वह तिथि रविवार को चतुर्दशी के मौके पर पड़ रही है जब भगवान ने कच्छप अवतार धारण किया। हम वंदन और अभिनंदन करते हैं भगवान विष्णु का कि उन्होंने इस संसार के कारण अनेकानेक रूप धारण कर धर्म की रक्षा की।
क्या है कथाः-
शास्त्रानुसार और विद्वजनों से मिली जानकारी के मुताबिक कूर्म अवतारण का यह कारण बना था कि देवराज इंद्र के शौर्य को देख ऋषि दुर्वासा नें उन्हें पारिजात पुष्प की माला भेंट की परंतु इंद्र नें इसे ग्रहण न करते हुए ऐरावत को पहना दिया और ऐरावत नें उसे भूमि पर फेंक दिया, दुर्वासा ने इससे क्रोधित होकर देवताओं को श्राप दे दिया, इनके देवताओं पर अभिशाप के कारण, देवताओं ने अपनी शक्ति खो दी। इससे अत्यंत निराश होकर वे ब्रह्मा के पास मार्गदर्शन के लिए पहुँचे। उन्होंने देवताओं को भगवान विष्णु से संपर्क करने को कहा। विष्णु ने उन्हें यह सलाह दी कि वे क्षीर समुद्र का मंथन करें जिससे अमृत मिलेगी। इस अमृत को पीने से देवों की शक्ती वापस आ जाएगी और वे सदा के लिए अमर हो जाएँगे। इस विशाल कार्य को मन्दर पर्वत और वासुकी (साँप के राजा) के सहारे से ही किया जा सकता था, जहाँ पर्वत को मथिनी का डंडा और वासुकी को रस्सी के समान उपयोग किया गया। इस कार्य के लिए असुरों का भी सहारा अवश्यक था और इसके कारण सभी देवता आतंकित हो गए। लेकिन विष्णु ने उनको समझाया और असुर देवों के पूछ्ने पर उनकी मदद करने के लिए तैयार हो गए, अमृत के लालच में। जब समुद्र का मंथन शुरू हुआ तो जहाँ एक तरफ असुर थे और दुसरी तरफ देव थे, लेकिन इस मंथन करने से एक घातक जहर निकलने लगी जिससे घुटन होने लगी और सारी दुनिया पर खतरा आ गया।
लेकिन भगवान महादेव बचाव के लिए आए और उस ज़हर का सेवन किया और अपने कंठ में उसे बरकरार रखा जिससे उनका नीलकंठ नाम पड़ा। मंथन जारी रहा लेकिन धीरे धीरे पर्वत डूबने लगा। तभी भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार (कछुआ) में अवतीर्ण हुए एक विशाल कछुए का अवतार लिया ताकि अपने पीट कर पहाड़ को उठा सकें। उस कछुए के पीठ का व्यास 100,000 योजन था।(1) कामधेनु जैसे अन्य पुरस्कार समुद्र से प्रकट हुए औरे धन्वतरि अपने हाथो में अमृत कलश के साथ प्रकट हुए। इस प्रकार से भगवान का कूर्म अवतार हुआ।


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