दिल्ली के जन आक्रोश में ब्रज द्वार हाथरस के कांग्रेसजनों ने भी दिखाया आक्रोश, असर वक्त बाने पर पता पड़ेगा
संजय दीक्षित
UP (India) 30 April। अगर वाकई यह रैली जन आक्रोश ही थी तो बदलाव सुनिश्चित है, लेकिन कैसा बदलाव राजनीति का या फिर सिद्धांतों का। हम किसी पार्टी या संस्था की बात नहीं करते, लेकिन यह जरूर जानते हैं कि जब-जब जनता में आक्रोश आया है बहुत बड़े बदलाव आए हैं। जो भी हो अगर यह रैली जन आक्रोश ही थी तो आक्रोश का प्रतिफल जब अच्छा निकलेगा तबकि यह जन आक्रोश यदि जन सहयोग में बदल जाएगा और गारंटी होगी जन सुरक्षा की, जन बच्चा की, जनता जनार्दन की, उद्योग और व्यापार की, शिक्षा और समाज की।
प्रयास होता है कि पार्टी से जुड़े निचले स्तर का कार्यकर्ता जोकि एक आम पब्लिक को ब्लोंग करता है। वह खुस है, उसकी सुनवाई हो रही है। जहां पर खाकी हिंसक हो जाए और प्रशासक सुनवाई न करे ऐसे सिद्धांतों, नीतियों और प्रयोगों को सिवाय परिवर्तित होने के अलावा और कोई रास्ता नहीं मिलता है। अरे जन आक्रोश वालो आपके मुद्दे तो ठीक हैं, लेकिन इनको जनता से जोड़ना होगा। आपका कहना है कि आज भगवा सरकार से किसान और व्यापारी सभी परेशान हैं। ठीक है मानते हैं, लेकिन इनको जनता के बीच जनता के मुद्दे बनाओंगे तो सही मायने में जन आक्रोश साबित होगा और इसका परिणाम होगा परिवर्तन। सत्ता में बैठकर सतुआ खालेने मात्र से ठंडक नहीं आती। जनता की समस्याओं और उनके समाधान से सत्ताएं संभल जाती हैं।
M. 8630588789




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