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व्यासपीठ को क्यों स्थापित किया जाता है श्रीमद् भागवत कथा में, आरपीएम में कलशयात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा

व्यासपीठ को क्यों स्थापित किया जाता है श्रीमद् भागवत कथा में, आरपीएम में कलशयात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा
संजय दीक्षित
UP (India) 01 May। एक मई को आरपीएम कॉलेज भी श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह का गवाह बना। इस मौके पर भागवत जी की मार्मिक कथा के श्रवण के लिए भक्तों पुण्यलाभ तो कमाया ही साथ ही इससे पूर्व निकली कलशयात्रा में सहभागिता करते हुए जो परमानंद की प्राप्ति की वह भी आलौकिक अनुभव था।
कलश यात्रा में शामिल हुए यह लोगः-
एक मई को आर.पी.एम.कॉलेज में शुरू हुई श्रीमद भागवत सप्ताह से पूर्व निकाली गई कलश यात्रा में उपस्थित डॉ. उमाशंकर शर्मा एवं निर्मला शर्मा, डॉक्टर अविन शर्मा सदस्य भारतीय खाध निगम भारत सरकार, क्षमा शर्मा, नरेश शर्मा, आयुष शर्मा, राहुल शर्मा, पं. अमित जी महाराज, देश दीपक रावत, विपिन लवानिया, अनुराग शर्मा, रामू शर्मा, रामहरी शर्मा आदि भक्तजन उपस्थित रहे।
क्यों कराई जाती है श्रीमद् भागवत कथाः-
मान्यता है कि श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अर्थात प्रणी का फिर इस संवार में आवागमन नहीं होता और वह प्रभु के बैंकुठ में निवास करता है। 
भागवत कथा में व्यासपीठ क्यों स्थापित की जाती हैः-
भागवत में व्यास पीठ का बड़ा ही महत्व है। कथा के श्रवण में एक वाक्य अक्सर सुनने को मिलता है कि ‘सूत जी बोले’ अर्थात श्रीमद् भागवत कथा का वर्णन भगवान वेदव्यास जी ने किया था, लेकिन चूंकि सूत परिवार में जन्मे महर्षि रोमहर्षण जो कि वेदव्यास जी के ही शिष्य थे और भगवत कथाओं में उनका समर्पण और ज्ञान को देखते हुए स्वयं व्यासजी ने महर्षि रोमहर्षण को व्यासगद्दी सौंपी थी। श्रीमद् भागवत में व्यासपीठ का विशेष महत्व है और कथा के बीच में यह वाक्य आना कि सूत जी बोले अर्थात सूत परिवार में जनमें अर्थात माता ब्राह्मणी माता और क्षत्रिय पिता से जन्मी संतान को सूत जाति में गिना जाता था जिसका मुख्य कार्य रथ संभालना और घुड़शाल की व्यवस्था देखना मात्र था। इसलिए ही माना जाता है कि सूत परिवार में जन्में महर्षि रोमहर्षण को व्यासजी द्वारा सौंपी गई व्यासपीठ के कारण भागवत कथा के दौरान व्यासपीठ अर्थात जो कथा व्यास हैं कथावक्ता हैं वह व्यास की उपाधि से संबोधित होते हैं और व्यसपीठ पर बैठ कर श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करते हैं अर्थात वह स्वयं व्यासजी के शिष्यवत होते हैं। जयश्री राधे।

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