कितना सच कतिना साफ, फिर भी मजदूर का अगर पैसा है तो मिलना चाहिए, इसको तूल देना ठीक नहीं
UP (India) 04 May। यूपी के जिला हाथरस की नगर एवं कस्बा मुरसान से जुड़े एक जनप्रतिनिधि गंभीर आरोप लगाए गए हैं वह कितने सच और कितने साफ हैं। शायद क्षेत्र की जनता तो जानती है। जिनका परीक्षण तस्वीर कितनी सच और कितनी साफ है स्पष्ट हो जाएगी। पहले सोशल मीडिया पर फिर प्रिंट मीडिया पर एक जनप्रतिनिधि को लेकर आरोपों की अग्रणीय सूचना लोगों की चर्चाओं में रही। कुछ उतरी और कुछ अटकी आखिर इतना गिरना कहें या फिर बेवकूफी कि घर की इज्जत से इस तरह पर्दा हटाना ठीक नहीं वह भी लेनेदेन को लेकर। हां कहावत बुजुर्गों की भी सही है कि मजदूर का पैसा उसका पसीना सूखने से पहले ही मिल जाना चाहिए, लेकिन यह बात कुछ हजम नहीं हुई कि जब राजा इंद्र के पास अतीव सुंदर इंद्राणी हो तो वह किसी और को....कुछ गले नहीं उतरती।
यहां पर यह चिंतनीय है कि राजनीतिक प्रतिद्वेष होता है, लेकिन किसी गरीब को उस पर बलि चढ़ा देना कहां की योग्यता है। यह भी माना जा सकता है कि नेता जी दूध के धुले नहीं है, लेकिन इतना भी नहीं कि मखमल को छोड़ कर सूती कपड़े से कोई अपना पसीना पौंछे, गले नहीं उतरती। हां गरीब है अपनी आवश्यकताओं के लिए काम करना कोई गलत नहीं, उसके साथ अभद्रता, गाली-गलौज करना भी ठीक नहीं और मारपीट करना तो अमानवीय है। मगर इस मामले को राजनीतिक मुद्दा बनाकर किसी और कि इज्जत से खिलबाड़ शायद अच्छी सौच नहीं हो सकती। हां नेताजी को भी यह करना चाहिए कि अगर उसके पैस ना भी निकल रहे हों तो थोड़ा-बहुत कंप्रोमाइज करना चाहिए व्यक्ति शान-ओ-शौकत से नहीं विचारों से बड़ा बनता है। यह मामला जितना जल्द निवटे निवटा लेने में ही अच्छा है।

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