क्रोध के बशीभूत गलत रास्ते पर जाता है प्राणी
संजय दीक्षित
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| नागनाथन लीला का मनोहारी दृश्य |
UP (India) 06 May। उस विषधारी के क्रोध और अभियान को श्याम के आत्मबल ने नाश कर दिया। क्योंकि क्रोध और अभियामान का दावानल समस्त प्रातिक गुणों का नाश कर देता है। जब कि हर बार दंडधारी का अंकुश संयम का पाठ पढ़ा अंतःकरण को प्रकाशित कर ज्ञान का संचार करता है। अर्थात कालिया रूपी बुरी प्रवृत्तियों का नाश करने का सामर्थ्य उस आत्मबल से उपजता है जो सदगुणों को आत्मसात करने या पूरी ईमानदारी से उसे विकसित करने से जन्म लेता है।
जीव की प्रवृत्ति जैसी होती है वह अपने आसपास वैसा ही वातावरण पैदा कर देती है। अर्थात वात हम कालीदह के नाग की दुषप्रवृत्तियों का नाश और आत्मबल से सराबोर कृष्ण द्वारा मंथन की कर रहे हैं। विषदंती कालिया नाग ने यमुना जी को वासस्थान बना लिया था। पूरा जल विषैला हो गया था। जेठ-असाढ़ की दोपहरी थी। श्रीकृष्ण ग्वालों व गायों के साथ यमुना तटा पर पहुंचे। प्यास से सबका गला सूख रहा थ। होनी ने ऐसी माया फेरी कि सब जानने के बावजूद उन्होंने यमुनाजी का जल पी लिया। विष ने अपना असर दिखाया, सब गाय-ग्वाले निष्प्राण होकर भूमि पर गिर पड़े। श्रीकृष्ण की लीला देखों, एक तरफ तो नियति को अपनी मजी। करने की छूट देदी, दूसरी तरफ अपनी अमृत दृष्टि डाल प्राणहीन पड़े शरीरों में चेतना का पुनःसंचार भी कर दिया। फिर कूद पड़े कालिया मर्दन के लिए।
कालिया सांवले-सुकुमार किशोर को देख दंभपूर्वक हंस पड़ा। देखते-देखते वह किशोर विषतप्त उत्ताल तरंगों से निडर खेलने लगे। अब कालिया फुफकार उठा। क्रोध में भर कृष्ण को डसने लगा। उसके शरीर को जकड़ लिया। लीलाधारी नागपाश में बंधकर निष्चेष्ट हो गए। उनके शरीर को विषधर ने जकड़ लिया। पृथ्वी और आकाश में अपशकुन होने लगे। ब्रज में हा हा कार मच गया। भाई बलराम मन की मन मुस्करा उठे। यह तो योगेश्वर की मनुष्य लीला है।
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| यूपी के जिला हाथरस में ऐतिहासिक मंदिर श्रीदाऊजी महाराज व माता रेवती के आलौकिक श्रृंगार दर्शन |
अंतः पराभौतिक शरीर के स्वामी ने दैवलीला शुरू की। शरीर फुलाकर विराट कर लिया और एक झटके में खुद को बंधनमुक्त कर लिया। कालिया के सौ सिर थे। हर सिर को दंडधारी श्रीकृष्ण अपने चरणों तले कुचलने लगे। वह सिर उठाता और हर बार कुचला जाता। अब कालिया नाग की जीवन शक्ति क्षीण हो चलीथी। फिर भी विषधारी डाह उगलने से बाज नहीं आ रहा था। पूरी तरह रौंदे जाने के बाद उसे विश्व के आदि शिक्षक पुराणपुरुष नारायण की गुरुता का भान हुआ। और वह उनकी शरण में आ गया। विषधारी की पत्नियों की पुकार और कालिया के शरण में आने पर उसको वह स्थान छोड़कर जाने और अपने पगुचिन्ह फनप र स्थापित कर उसे छोड़ दिया। उसकी बुरी प्रवृत्तियों का नाश हुआ और ब्रज में शांति का संचार हुआ यमुना पुनःविष से मुक्त हुई।



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