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जिन्ना के जमड़ों की होगी जमानत जब्त, मनोज में आज भी वही जज्बा और जूनून है, वह फिर उठेगा और लिखेगा इतिहास

जिन्ना के जमड़ों की होगी जमानत जब्त, मनोज में आज भी वही जज्बा और जूनून है, वह फिर उठेगा और लिखेगा इतिहास
संजय दीक्षित
मनोज अलीगढ़ पर हमले के बाद जारी एक कार्टून। धन्वयवाद
 है उन सख्शियत को जिन्होंने यह कार्टून बनाया है
जख्मी मनोज अलीगढ़
UP Alighar, 14 May। जिन्ना के जमूड़ों की हरकत तो देखिए ऐसे हरकत में आए कि मानो बिल्ली खिशिया गई हो। अरे वह मूर्ख जानते नहीं जिस थाली में खाते हैं उसी में छेत करते हैं। सारा
फोटो जर्नलिस्ट मनोज अलीगढ़ी
भोजन टपक जाएगा। दरअसल जिस पर ऊल रहे हैं वह उनका है कौन यह भी नहीं सोच रहे हैं। पल यहां पर रहे हैं और बाप किसी और को कहते हैं। उसी का तो परिणाम है मनोज को चौटिल कर दिया। वास्तव में चोट मनोज को नहीं आई है चोट उन सभी देशभक्तों के दिलों पर लगी है जो भारत के सच्चे सपूत है। अगर उनका दिल धधका तो सोचो जिन्ना के जमड़ों का हाल क्या होगा।
जी हम बात दरअसल यूपी के अलीगढ़ की कर रहे हैं। जहां पर देश में दरार डालने वाले जिन्ना के जिन्न का प्रतिरूप टंगा था। भला हो गौतम जी का कि उन्होंने वर्षों की चर्चा को विराम देने की कोशिश की। क्योंकि अक्स यह बात चर्चा-ए-आम होती थी कि यूनिवर्सिटी में पाक के नेता की तस्वीर टंगी है। पब्लिक पाक चर्चा में जब-जब यह दौर चलता अलीगढ़ के नेताओं की कार्यशैली पर हर वार
मो.अ.जिन्ना
प्रश्नचिन्ह लगता था। अगर बात चर्चाओं की माने तो साहसी और तेज तर्राज फोटा जर्नलिस्ट मनोज अलीगढ़ी ने भी इस संबंध में केई वार चर्चा में इस बात को उठाया था। इसी का परिणाम था कि सतीश भी कुछ साहस जुटा सके और जिन्ना के जिन्न को उतारने की उन्होंने पहल कर डाली।
यह कहना कदाचित गलत नहीं होगा कि जो सत्य और सटीक बात करता है वह अकल के दुश्मनों को खटकता है। यहां पर मनोज अलीगढ़ी का भी हाले-ए-दास्तां कुछ ऐसा ही था। क्योंकि जब भी चर्चा में विगुल बजता वह सत्य के सार्थी जैसे दिखाई देते। मनोज द्वारा सत्य के रथ को हांकना जिन्ना के जमड़ो को कुछ रास
फोटोजर्नलिस्ट मनोज अलीगढ़
नहीं आता था। परिणाम उनको मौके की तलाश थी, लेकिन वीरों की परीक्षाएं कोई क्या करेगा। मनोज की चोटें तो ठीक हो रही हैं और हो जाएंगी, लेकिन उन चोटों को कोई कैसे ठीक कर पाएगा जो जिन्ना के जमड़ों ने भारतीय संस्कृति, सभ्यता, सोच और संस्कारों को जो दी हैं। जिसने राज्यपाट छोड़कर देख की आजादी को चुना यानि राजा महेंद्रप्रताप सिंह की वहां कोई तस्वीर नहीं है, लेकिन जिसने यूनिवर्सिटी में रहकर अपना और परिवार के लिए पाकिस्तान के रूप में अपना उज्ज्वल भविष्य बना लिया और देख को धोखा देकर ठेंगा दिखा लिया। उसको पूजने वाले क्या कभी भारतीय हो सकते हैं। सोचना तो पड़ेगा। शर्म आती है ऐसी सोच और उस सोच को पैदा करने वालों पर जो कभी अपने देश के नहीं हो सके वह पाक के क्या होंगे। वास्तव में वह तीसरे स्थान के ही हकदार होंगे। क्योंकि व न वहां के होंगे और न यहां के। जय हिन्द, जय भारत।

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