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श्रीराम की जन्म स्थली पर रचित हुआ था ‘‘रामचरितमानस’’

-महाग्रन्थ के प्रथम दिन वही तिथि और नक्षत्र थे जो श्री राम जन्म पर एकत्र हुए थे और सीताराम विवाह पंचमी को रामचिरत मानस महाग्रन्थ संपूर्ण हुआ था


भक्तमाल की कथा दौरान भक्तजनों को कथाओं
का मार्मिक वर्णन करते आचार्य गौरांगजी महाराज
UP Hathras 12 जून, 18। ‘‘गावत बेद पुरान अष्टदस। छहो सास्त्र सब ग्रन्थन को रस।। मुनि जन धन संतन को सरबस। सार अंस संमत सबही की।।’’ आरति श्री रामायन जी की। अर्थात सभी ग्रन्थों का रस कहे जाने वाले महाकाव्य श्रीरामचरित मानस प्रथम दिन प्रथम अक्षर, प्रथम शब्द, प्रथम वाक्य, प्रथम दोहा, प्रथम चैपाई अर्थात शुभारंभ श्री रामनवमीं के दिन हुआ था। जबकि यह महाग्रन्थ श्री सीताराम विवाह पंचमी को संपन्न हुआ था।
श्रीरामचरित मानस की मर्मज्ञता में जाते हुए भक्तमाल की कथा के दौरान आचार्य श्रीगौरांगजी महाराज
भक्तमाल की कथा में प्रवचन सुनते भक्तजन
ने श्रीराम दरबार मंदिर में कहा कि जब काशी में महाकवि तुलसी बाबा ने रामायण लेखन का कार्य शुरू किया। प्रथम दिन जब उन्होंने अपनी पौथी संभाल कर रखी तो दूसरे दिन वह गायब हो गई। इसी प्रकार लगातार सात दिन उनकी पौथी गायब होती रही, लेकिन तुलसी बाबा इसको नहीं समझ सके तो उनको स्वप्न हुआ जिसमें भोलेभंडारी कह रहे हैं कि सुगम और सरल भाषा में रामचित का लेखन करो।
पं. सुनीलदत्त रावत
जब स्वप्न टूटा तो भी गोस्वामी जी इसको भ्रम मानने लगे तो स्वयं शंभु प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि हे तुलसी तुम पूर्व जन्म (महर्षि वाल्मीकि के रूप) में संस्कृति भाषा में रामायण का लेखन कर चुके हो, लेकिन अब कलिकाल के लिए लोगों को सुगम और सरल रस वाली भाषा में रामचित का वर्णन करो। वह भी प्रभु के धाम अयोध्या में जाकर। 
आज्ञा शिरोर्धाय कर गोस्वामी जी अध्योध्या के लिए प्रस्थान कर गए। जहां पर उन्होंने स्थान की तलाश की तो वहां पहले से ही एक रमणीक स्थान पर एक तपस्वी उनका इंतजार कर रहे थे। तुलसीदास बाबा को वह
पं.योगेद्रमोहन शर्मा
स्थान सौंप वह योगाग्नि में भस्म हो गुरुशरण में पधारे। यह भी एक संयोग ही था कि जिस दिन गुंसांई बाबा ने ‘‘राम चरित मानस’’ को लिखना आरंभ किया।
वह दिन प्रभु श्रीराघवेंद्रजी महाराज के जन्म का दिन था। वही समय, वही नक्षत्र था जब प्रभु श्री राम इस धरा पर पधारे थे। तुलसी बाबा ने पांच प्रतियों में श्री राम चरित मानस ग्रन्थ को तैयार किया। जब ग्रन्थ तैयार हुआ उस दिन भी श्रीसीताराम विवाह पंचमी का उत्तम और मनोहरी दिन था जब हमारे प्रभु राम और माता सीता विवाह सूत्र में बंधे थे। इसके अलावा आचार्य जी ने गोस्वामी जी के पूर्व वाल्मीकि जन्म, रामायण के प्रथम वक्ता प्रभु भोलेनाथ आदि से संबंधित भक्तमाल की कथाओं का मार्मिक वर्णन किया।

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