‘‘तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुंज लघुबयस सुहावा।।
कबि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी।।’’
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| कथा समापन के दौरान ब्रज बरसाना यात्रा मंडल के प्रमुख मा .कैलाशचंद्र जी कलंगी पहना कर व्यास का स्वागत करते हुए |
UP Hathras 13 जून, 18। रामचिरत मानस के लेखक महावीर हनुमान जी भी हैं। हनुमान जी ने भी रामचिरत मानस में अपना लेखन किया है। अर्थात एक वक्त ऐसा भी आया था जब गोस्वामी तुलसीदास तो चरित्र में कूद गए थे और रामचरित मानस का लेखन न रुके इसलिए वह कार्य तत्काल हनुमान जी ने संभाल लिया था। चूंकि गुंसाईबाबा तो प्रभु के चरित्र में कूद गए थे तो रामचिरत का कार्य रुक जाता।
यह मार्मिक ज्ञान कथा व्यास गौरांगजी
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| कथा प्रवचन सुनते भक्तजन |
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| तालाब चौराहा स्थित मंदिर श्री रामदरबार पर प्रभु राघुवेंद्र, माता जानकी और लखन लालजी के आलौकिक दर्शन |
हनुमान जी ने रघुवर से कहा कि महाराज यह तो लेकिन ही रुकते अधूरा रह जाएगा। क्या तुलसी को रोकूं, प्रभु बोले नहीं हनुमान यह भावविभोर है यह चरित्र में कूदना चाहता है कूदने दो। मैं नहीं चाहता उसका यह ध्यान टूटे। तब हनुमान जी बोले तो रामचरित का लेखन कैसे पूर्ण होगा महाराज तुलसी के स्थान पर फिर कौन लिखेगा इस महान ग्रन्थ को। तब प्रभु बोले हनुमान तब तक तुलसी चरित्र से नहीं लौटते तब तक तुम लिखोगे रामचरित मानस को।
‘‘तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुंज लघुबयस सुहावा।।
कबि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी।।’’ अर्थात जब प्रभु वन गमन पर निकले हैं तो
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| कथा समापन के बाद प्रसादी ग्रहण करते व्यास और उनकी टीम |
जैसे से ही प्रभु से मिलकर तुलसी चरित्र से बाहर आते हैं पुनः हनुमान जी हट जाते हैं और अपने रामचरित्र ग्रन्थ का लेखन शुरू कर देते हैं। इस प्रकार रामचरित्र मानस के लिखने में हनुमान जी ने भी तुलसीदास जी का सहयोग किया है।




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