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‘‘साधु अवज्ञा का फल लैही, जलहि नगर अनाकर जैसा’’ : गौरांगजी

गोस्वामी कृत सिद्ध हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करने से दुख, दालिद्र आदि सभी कष्टों से मुक्त हो प्रभुभक्ति का मार्ग सुलभ होता है
वाइव न्यूज नेटवर्क
UP Hathras 08 जून, 18। ‘‘रामदुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिन पैसारे। सब सुख लहै तुम्हारी सरना,
मथुरा धाम निवासी कथा प्रवचन करते गौरांग जी महाराज
तुम रक्षक काहू को डर ना।’’ गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री हनुमान चालीसा की यह सिद्ध चौपाई के जाप से ही हमें सद्मार्ग की प्राप्ति हो गई। उस महान श्रीरामदास यानि श्री रामभक्त श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज द्वारा सिद्ध हनुमान चालीसा का जो सत यानि सौ बार पाठ करेगा, वह धनधान्य से कभी दुखी नहीं रहेगा। उसके सारे कार्य स्वतः ही सिद्ध हो जाएंगे।
रामदरबार तालाब चौक पर कथा प्रवचन सुनते श्रद्धालु भक्तजन
भक्तिमाली की कथा के चतुर्थ दिवस यानि शुक्रवार को मार्मिक कथाओं के वर्णन में मथुरा निवासी कथाव्यास गौरांगजी महाराज ने यहां पर तालाब चौक श्री रामदरबार मंदिर में आयोजित कथा को श्रवण कराते हुए व्यक्त किए। उन्होंने गुसांई बाबा के जीवन चरित्र पर प्रकाशडालते हुए कहा कि जब उनके गुरुदेव स्वर्ग सिधारे तो वह अपार दु्रवित हुए और गुरु आज्ञा के अनुसार वह अपने जन्मस्थान राजापुर पहुंचे और पूता कि यहां पर आत्माराम दुबे के संबंध में पूछा तो पता चला कि गांव के एक कोने में एक खंडहर पड़ा है, लेकिन वहां रहने वाला कोई नहीं हैं।
रामदरबार तालाब चौक पर कथा प्रवचन सुनते श्रद्धालु भक्तजन
आचार्य ने कहा बताया कि ‘‘साधु अवज्ञा कर लैही, जलहि नगर अनाकर जैसा’’ सुंदरकांड में आई इस चौपाई का बड़ा ही अपार अर्थ है। जहां पर साधु की अवज्ञा होती है वहां पर उन्नति नहीं होती। इसी प्रकार राजपुर में एक वृद्ध ने बताया कि आत्माराम दुबे के यहां पर एक बच्चे ने जन्म लिया था। जन्म लेते ही उसकी अवस्था 5 वर्ष सरी के बच्चे जैसी हो गई। रामनाम उच्चरित बच्चा उठकर चल दिया। उसके कुछ समय बाद ही आत्माराम दुबे की पत्नी का स्वर्गवास हो गया। इधर, जिस दाई ने बच्चे को पाला था उसकी मृत्यु के बाद जब आश्रम वालों ने आत्मारामदुबे के यहां आकर पूछता तो उत्तर मिला कि जो बच्चा जन्म लेते ही अपनी मां को खा गया। पालन करने वाली दाई को खा
गया, ऐसे बच्चे का यहां कोई कार्य नहीं हैं। यह वाक्य एक साधू ने सुनलिए और उन्होंने बच्चे विलक्षणता को पहचान लिया तो उन्होंने आत्माराम दुबे के परिवार को शाप दिया कि यहां पर कोई नामलेवा व पानी देवा नहीं होगा। दो मास बाद आत्माराम दुबे और दस मास में पूरे परिवार में सभी कालकप्ति हो गए।
गोस्वामी तुलसीदास के संबंध में जब गांव में जानकारी हुई तो सभी हर्षित हो उठे। वहीं पर एक ब्रह्मण परिवार की कन्या जिसका नाम रत्नावली था, विवाह हो गया। एक समय काफी समय से मायके में रह रही रत्नावली से मिलने को आतुर हुए और नदी पार कर उनके घर पर लटक रहे सर्प को पकड़कर घर में उनके कक्ष में पहुंच गए तो स्वयं रत्नावली दंग रह गई और यह कहा कि धिक्कार है मेरे प्यार और मेरे में लगी आपकी रुचि को जिसने आपको अपने मार्ग से भटका दिया। इतनी लगन अगर राम में लगाई होती तो क्या प्रतिफल मिला होता। गोस्वामी को बौध होते ही वह श्री रामभक्ति में लीन हो गए।

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