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भक्तों की कथाओं को स्वयं भगवान सुनने आते हैंः गौरांग जी

‘‘बिनु सत्संग विवेक न होई। रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।’’
श्रद्धेय आचाय गौरांगजी महाराज को ब्रज बरसाना यात्रा
मंडल के प्रमुख मा.कैलाशचंद्र वार्ष्णेय माल्यार्पण करते हुए
UP Hathras 05 June, 18। गुसांई बाबा ने कहा है कि मातापिता बच्चों को उदरपूर्ति के लिए प्रेरित करते हैं। कौन से ऐसे मातापिता हैं जो अपने बच्चों को कहते हैं जा कथाश्रवण कर, जा प्रभु कहा वहां सत्संग हो रहा है, वहां पर जाकर सत्संग का लाभ ले। जबकि प्रभु प्राप्ति के बाद भी अनवरत भक्ति जारी रहनी चाहिए। भक्ति का सीधा संबंध सत्संग अर्थात सत संगत से ही प्राप्त होता है।
पं.सुनीलदत्त रावत भक्तिमाल की कथा श्रवण करते हुए
यह भक्ति उद्गार श्रद्धेय आचार्य श्री गौरांगजी महाराज ने पुरषोत्तम मास के मौके पर श्री ब्रज बरसाना यात्रा मंडल व श्री राम दरबार प्रभत फेरी मंडल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भक्तिमाल कथा के प्रथम दिन भक्तश्रोताओं को कथा का श्रवण कराते हुए व्यक्त किए। इस से पूर्व कथा में मुख्य यजमान मनोज बूटिया ने कथा व्यास गौरांगजी महाराज व भक्तिमाल शास्त्र का पूजन-अर्चन किया। ब्रज बरसाना यात्रा मंडल के प्रमुख मा. कैलाशचंद्र वार्ष्णेय ने व्यासजी महाराज का माल्यार्पण कर स्वागत किया।
इस मौके पर आचार्य श्री ने बताया कि ‘‘बिनु सत्संग विवेक न होई। रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।’’ अर्थात बिना अच्छी संगत के  प्रभु की प्राप्ति असंभव है। प्रभु की प्रप्ति के लिए सत्पुरुषों को श्रद्धा और भाव के साथ सुनना चाहिए। अर्थात अच्छी संगत से विवेक की प्राप्ति होती है जो प्रभु के मिलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। क्योंकि सत्संग उसे नया जन्म देती है। जैसे, कचरे में चल रही चींटी यदि गुलाब के फूल तक पहुँच जाय तो वह देवताओं के मुकुट तक भी पहुँच जाती है। ऐसे ही महापुरूषों के संग से नीच व्यक्ति भी उत्तम गति को पा लेता है।
भक्तिमाल की कथा का श्रवण करते भक्तजन
श्रद्धेय आचार्य ने इस भक्तिमाल की प्रथम दिन की कथा में प्रभु के परम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के संबंध में मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने कहा कि हनुमान चालीसा में उन्होंने हनुमत भक्ति का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। चालीसा का मतलब चालीस चौपाइयों का वह मंथन जिसमें श्रीराम भक्त की वह वालीस अच्छाइयां जो उनमें भक्तिश्रोमणि का दर्जा दिलाती हैं। उन्होंने कहा कि भगवान की कथाओं को भक्त सुनते हैं और जहां पर भक्तिमाल की कथा होती है वहां पर स्वयं भगवान कथा सुनने आते हैं। अर्थात भक्तिमाल की कथाओं को भगवान सुनते हैं।
इस मौके पर मा.कैलाशचंद्र वार्ष्णेय, पं.योगेंद्रमोहन शर्मा, पं. सुनीलदत्त रावत, राजेश शर्मा, श्रीमती मधु शर्मा, रोचक जैन, आशीष जैन, विकास अग्रवाल, संजय दीक्षित एडवोकेट आदि अनेकों भक्तजन मौजूद थे।

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