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हर भक्त का असली नाम तो ‘‘रामदास’’ हैः गौरांग जी महाराज

रामचरित मानस के मूल वक्ता भोलेनाथ ही हैं जिन्होंने सौ करोड़ तरह से रामचरित मानस का मंथन किया है
वाइव न्यूज नेटवर्क
भक्तिमाल की कथाओं का मार्मिक वर्णन करते हुए गौरांगजी महाराज
गौरांगजी
UP Hathras 06 June, 18। गोस्वामी बाबा कहते हैं कि मेरा असली नाम तो ‘‘रामदास’’ है। मेरा ही नहीं हर व्यक्ति का असली नाम ‘‘रामदास’’ ही है। रामचरित्र के मर्मज्ञ अगर होई हैं तो वह है श्री भोलेनाथ जी महाराज। वास्तव में रामचरित मानस के मूल वक्ता शंकर जी ही है। उन्होंने सौ करोड़ तरीके से राम के चरित्र का मंथन किया है।
यह उद्गार प्रभुचरणानुरागी आचार्य गौरांग जी महाराज ने ब्रज बरसाना यात्रा मंडल और श्री दरबार प्रभात फेरी के संयुक्त तत्वावधान में चल रही श्री भक्तिमाल की कथा के मौके पर द्वतीय दिन बुधवार को श्री राम दरबार में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जो शास्त्रनुसार अपने जीवन को ढालता है उसको वैसा ही प्रतिफल भी मिलता है। एक छेपक के दौरान कथा श्रवण कराते हुए गौरांग जी महाराज ने कहा कि कथा के दौरान पंड़ित जी ने कहा कि शास्त्र ऐसा कहते हैं कि रविवार को बैंगन नहीं खाने चाहिए। व्यासपीठ के वाक्यों को शिरोधार्य करते हुए वैश्य ने उनका पालन किया और घर में आते ही रविवार को घर में बैंगन बनाने की मना कर दिया।
कथा श्रवण करते भक्तजन
एक बार की बात है वैश्य किसी कार्य बस पंड़ित जी महाराज के यहां पहुंचा तो देखता है कि पंड़ित जी बैंगन का भर्ता खा रहे थे और दिन रविवार का था। पहले छमा मांगते हुए वैश्य ने कहा कि महाराज आपने तो रविवार को बैंगन का सेवन निषेध बताया था। पंड़ित जी बोले रुको। उन्होंने अपने पुत्र का आवाज जी बेटा जरा जल्दी आओ एक कार्य है। पंड़ित जी के पुत्र ने आवाज दी हां पिताजी आता हूं, लेकिन काफी देर तक नहीं आया। काफी कहने के बाद भी जब विप्रपुत्र नहीं आया तो पंड़ित जी वैश्य से बोले सेठ ऐसा करो मेरा पुत्र तो नहीं आ रहा है। काम आश्यक है तुम अपने पुत्र को बुलालो। आज्ञानुसार वैश्य ने पुत्र को तत्काल आने को कहा तो काफी दूर घर होने के बाद वैश्य पुत्र पंड़ित जी के घर पहुंच गया। आज्ञा मांगी तो पंडित जी ने कहा कि सेठ तुम अपना जीवन शास्त्रानुसार जी रहे हो। इसलिए तुम्हारा पुत्र एक बार में ही दौड़ा चला आया, लेकिन मेरे यहां पर पास में ही पुत्र होते हुए काफी कहने पर भी वह नहीं आया। यह ही शास्त्रानुसार और शास्त्र की अवज्ञ का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि वैश्य को व्यापार में शास्त्रनुसार हिस्सा लेना चाहिए, पुरोहित को आए जान में से शास्त्रानुसार ही हिस्सा ग्रहण करना चाहिए और दान कर देना चाहिए। राजा को शास्त्रानुसार ही कर वसूलना चाहिए। जहां पर शास्त्र सम्मत आचरण नहीं होता वहां पर सुमत नहीं होती। उन्होंने कहा कि ‘‘जहां सुमिति तहां सपंति नाना, जहां कुमति वहां विपत निधाना।।’’

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