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वह रोडवेज में ऐसे कंडेक्टरी करती है कि कोई मर्द क्या करेगा

वह रोडवेज में ऐसे कंडेक्टरी करती है कि कोई मर्द क्या करेगा
-दबंग लेडी कंडेक्टर को भी मिला दूसरी लड़की से करारा जबाव
संजय दीक्षित
यह वह बस है। जिसमें रविवार 22 जुलाई, 18
को दो युवतियों का तमासा देखने मिला
UP Hathras 22 July, 18। आज के समय में महिलाएं पुरुषों से किसी भी मद में कम नहीं हैं। आज दो बेटियों का जब जज्बा देखने को मिला मेरी सोच कुछ अलग हटती दिखाई दी। देभी क्यों ना जब महिलाएं तो वायुयान उड़ा रही हैं, तो बेटी का बस कंडेक्टरी करना कोई ताज्जुब की बात नहीं है, लेकिन हाथरस के लिए यह एक बेहद अचरज वाला मुद्दा है कि हाथरस डिपो में और हाथरस की ही बेटी कंडेक्टरी करे और वह भी पूर्ण स्वाभिलंभिता के साथ निडर होकर। एकने निर्भीक कंडेक्टरी कैसे होती है और दूसरी बेटी ने दो इंट का जबाव पत्थर से कैसे देते हैं, करके दिखा दिया।
श्रीमान जी यह किसी फिल्म की स्टोरी नहीं है। रविवार को घटित वह घटना है जिससे मैं मजबूर होकर खबर को लिखने के लिए मजबूर हो गया। दरअसल मुझे परिवार के साथ एक कार्यक्रम में आगरा जाना पड़ा। जब हम लोग लौट रहे थे तो वाहन के लिए बड़ी दिक्कत हुई। क्योंकि हर रोडवेज बस हाथरस बाईपास से होकर निकलने की कह रही थी। आगरा के रामबाग चौराहे पर हम काफी देर तक खड़े रहे। अचानक एक हाथरस डिपो की बस आती है। मैने पास जाकर पहले तो कंडेक्टर को तलाशा, लेकिन वहां कंडेक्टर था ही नहीं तो पूछता किससे, लेकिन कंडेक्टर सीट पर एक युवती उम्र करीब 20 वर्ष बैठी थी। उसने पूछा कहां जाना है, मैने कहा हाथरस। तो वह बोली बेठो, मैने कहा अंदर शहर में जाना है। तो उसने उत्तर दिया कि बस स्टैंड पर उतारेंगे।
मेरा फिर भी ध्यान नहीं गया कि यह लड़की मुझ से क्यों जबाव-तलब कर रही है। बहरहाल हम लोग बैठ गए। बस चल दी और थोड़ी ही देर में वही लड़की टिकट काटने वाली मशीन को लेकर आती है और कहती है बताओ भाई अपनी-अपनी टिकट तो मैं चाअनक भौचक्का सा रह गया और फिर मुझे पूरा का पूरा माजरा समझ आ याग। उस लड़की में कतई भी लड़की पन दिखाई नहीं दे रहा था। जैसे एक कंडेक्टर तल्खी से बात कर टिकटें बनाता है वह बेटी भी सभी से उसी लहेजे में बात कर रही थी। जो टेड़ा बोलता उसको ही वह रानी लक्ष्मीबाई जैसे तेबर भी दिखा देती। बहरहाल उसने टिकट काटना शुरू कर दिया और अपना काम बखूबी से करती जा रही थी और सभी को अपनी निर्भीक कार्यशैली से अचंभित कर रही थी।
नहले पर पै दहलाः- अचानक थोड़ी दूर बस चली थी कि एक लड़की उम्र करीब उसकी लगभग वही थी जो
इस टिकट से हमने रविवार की यात्रा की जब
हमको दो युवतियों का तमाश देखने मिला
कंडेक्टर बिटिया की थी, आकर बैठ जाती है। उससे भी लेडी कंडेक्टर का वही सवाल, कि टिकट बनवाओ। कंडेक्टर जब तक अपना वाक्य पूरा करती उस लड़की ने भी तत्काल दो हजार का नोट निकाल कर दे दिया। कंडेक्टर लड़की ने उस लड़की से भी उसी लहेजे में बात की और कहा कि खुले पैसे लेकर चला करो, लेकिन यह क्या कंडेक्टरी कर रही उस तेज तर्रार लड़की को उम्मीद भी ना थी कि उसको करारा जबाव मिलेगा। टिकट लेने वाली लड़की ने कहा कि ग्राहकों से यह बात करने का लहेजा गंदा है सुधार करो। ग्राहक देवता होता। कंडेक्टर लेडी ने जबाव क्या सुना वह तो आग बबूला हो गई और तपाक से उसका दो हजार का नोट उस पर फेंक दिया और कहा या तो खुले पैसे दो या उतर जाओ। जबाव पर जबाव नजारा देखने लायक था। शिकायती नंबर लिखा है। कर दी तो नौकरी भी झमेले में पड़ जाएगी। बहरहाल लोगों के बीच-बिचाव के बाद मामला शांत हुआ और थोड़े ही देर में टोल प्लाजा आ गया। लड़की तपका से उतर कर गई और टोल पर कार्य कर रहे युवक से उसने दो हजार का नोट फुराया और हमउम्र कंडेक्टर लेडी को दे दिया। साथ ही जबाव दिया किसी की शिकायत कर नौकरी छीन लेना आसान है, लेकिन किसी को नौकरी देना कठिन। मैने तुम्हे आज जीवनदान दिया है। क्योंकि सारी बस गवाह है। शिकायत होने पर तुम्हारी नौकरी भी जा सकती थी और इसी कहासुनी के साथ हाथरस आता है और वह लड़की लेडी कंडेक्टर आदत में सुधार की नसीहत देते हुए कह कर उतरती है कि मैने तो माफ कर दिया शायद और कोई नहीं करेगा। विनम्रता ही सफलता का एक रास्ता है।

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