श्रीकृष्ण के चंद घंटों बाद ही जन्म हो गया था हाथरस का, जानिए कैसे ? कहते हैं ब्रज की द्वार देहरी
संजय दीक्षितः-8630588789
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| माता हाथुरसी देवी (मां पार्वती) सैकड़ों वर्ष पुरानी प्रतिमा जिससे होती है हाथरस की पहचान |
02 सितंबर, 18। आज हाथरस नगर की असली आधाशिला रखे जाने की पांच हजार वर्ष पुरानी वर्षगांठ है। हालांकि वेदिक इतिहास को उठाकर देखें तो ‘‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’’ में ‘‘हाथरस’’ के नामकरण का जिक्र मिलता है। जिसमें तिथि के हिसाब से द्वापर युग में भादों मास की नवमीं और दसमीं तिथि के मौके पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ यहां पर आए थे और माता पार्वती के लिए हाथ से रसपान कराया था इसलिए इस नगरी का नाम ‘‘हाथरस’’ पड़ा।
श्रीकृष्णजन्म और हाथरस का आपस में बहुत
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| सैकड़ों वर्ष पुराना शिव परिवार और पींडी |
ही पुराना नाता रहा है। दरअसल हाथरस नगरी से ही ब्रज का प्रारंभ होना बताया जाता है। धर्मवेत्ता स्व. सुरेशचंद्र मिश्र जी ने अपने कई कार्यक्रमों में वक्तव्य देते हुए पौराणिक आधार पर यह सिद्ध भी किया था कि हाथरस नगरी माता पार्वती का विश्राम स्थल है। क्योंकि श्रीकृष्ण जन्म के चंद घंटों वाद ही ब्रज में यानि नंदरायजी के यहां पर आसपास के नगरों के अलावा सुर, गंधर्व, देवता, नाग, किन्नर सभी का समावाड़ा होने लग गया था। मुख्य कारण प्रभु श्रीकृष्ण के अवरतण पर उनके दर्शनों का ही था। प्रसंग के मुताबिक अपने आराध्य प्रभु श्री हरि का नंद के यहां पर अवरण की जानकारी होने पर भगवान श्री शिव माता पार्वती के साथ भगवान श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ निकले थे।![]() |
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चूंकि प्रभु की लीला थी और उनक दर्शन शिवबाबा को करने थे। इसलिए मां पार्वती को इसी धरा पर यानि ‘‘हाथरस’’ पर मां पार्वती को विश्राम के लिए कहा। प्रसंग आता है कि इसी दौरान मां पार्वती को प्यास लगने पर भगवान शिव ने इसी धरा से अपने हाथों से जल निकाल कर पिलाया था। इसलिए ही इस धरा का नाम मां पार्वती के माध्यम से ही ‘‘हाथरस’’ रखा गया और बाद में यह प्रचलित भी हुआ। वृतांत के मुताबिक यहां से
भगवान शिव ने नंद गांव से चंद दूरी पर आस लगा कर धूरी जमाई थी। तभी से वहां पर आश्वेश्वर महादेव के नाम से विश्वविख्यात हुए।
क्या कहते हैं विद्वजनः-
ज्योतिषविद और भागवताचार्य उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि ‘‘हाथरस’’ का नाथा श्रीकृष्ण जन्म से जुड़ा है। इसका पौराणिक आधार है ब्रह्मवैवर्त पुराण। यहीं से ब्रज आरंभ होता है। इसलिए हाथरस को ब्रज की द्वार देहरी कहा जाता है।



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