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बेटी तो बच गई, लेकिन मौत से खेल रही

विज्ञापन और प्रचारतक ही ज्यादा असर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का
संजय दीक्षित

पढ़ाई की उम्र में मौत का खेल दिखाती छोटी बच्ची
12 सितंबर, 18। उम्र करीब 7 वर्ष, लिंग स्त्री, स्थान लोहट बाजार, शहर व जिला हाथरस (उत्तर प्रदेश), समय करीब साढ़े तीन बजे दिन के और नारा बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ। लेकिन पढ़ाई के स्थान पर एक छोटी सी जान हर पल मौत का करतब दिखा रही है और करीब 15 वें राहगीर के बाद कोई एक उसको दो, पांच या दस का नोट देकर आगे बढ़ रहा था। क्या यही है मेक-इन-इंडिया।
इंडिया बदल रहा है, क्या खाक बदल रहा है। सरकार का नारा है ‘‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’’ उस नन्हीं सी जान जिसका फोटो भी इस खबर के साथ अटेच है। देंखे आप उसकी उम्र इस जोखिम भरे काम को करने के लिए एलाऊ करती है। नहीं ना, लेकिन ऐसा ही हो रहा है जनाब। भ्रष्टतंत्र की किताब उठाकर देंखे तो सरकार से जारी सारी योजनाओं पर खर्च होन वाला पैसे का दसवां भाग भी वहां तक नहीं पहुंच रहा जहां उसे पहुंचना चाहिए।
क्यों दिखाती है वह खेलः-
कविता निवासी सासनी क्षेत्र का एक गांव अपनी साढ़े छह वर्ष की बेटी हिमांशी (सभी बदले हुए नाम हैं) के साथ रोज घर से इस पापी पेट के लिए निकलती है। उसका कहना है कि पति है, लेकिन बीमार है। घर भी देखना और जिम्मेदारियां भी। प्यार से पूछ लेते हैं क्या तकलीफ है और आगे बढ़ जाते है। जिम्मदारी है तो कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा।
योजनाएं तो हैं, लेकिन कागजों मेंः-
ऐसे जरूरतमंदों के लिए सरकारी योजनाएं तो हैं। हर सरकार में सभी के लिए बढ़िया योजनाएं संचालित होती हैं, लेकिन उसमें से दस प्रतिशत भी पब्लिक तक नहीं पहुंच पाती है। मतलब योजनाएं तो पूरी संचालित हो जाती है, लेकिन लाभ दस प्रतिशत तक भी नहीं पहुंचती।
क्या थी पूर्व प्रधामंत्री की सोचः-
हाथरस आगमन के वक्त पूर्व प्रधनमंत्री स्व. राजीव गांधी ने अपने एक भाषण में कहा था कि ऊपर से एक रुपया चलता है तो जनता में केवल 10 पैसे पहुंचते हैं। देश का विकास चाहिए तो पूरा का पूरा पैसा जरूरतमंदों
Sanjay Dixit
और विकास की योजनाओं में लगना चाहिए। हम अगर हम सत्ता में आते हैं तो निश्चित ही इसबार इसी पर कार्य होना है, लेकिन भ्रष्ट तंत्र ने नष्ट कर दिया वह भाषण और स्व. गांधी की योजना को। गंदी राजनीति ने उनको मौत की माला पहना दी और शांत हो गया एक अच्छा नेता। यहां हम बात किसी राजनीतिक दल या उसके विरोध और समर्थन की नहीं कर रहे हैं। बात कर रहे हैं एक अच्छे व्यक्तित्व अच्छी सोच की। कुल मिलाकर भ्रष्टतंच में कुछ नहीं बदला। गरीब और गरीब व अमीर और अमीर होता जा रहा है। जाति, धर्म की गंदी राजनीति से इंसानियत तार तार हो रही है।
जरूरत वालों को पैसा नहीं है। उनके हकों पर डांका डाल रहे है भ्रष्टतंत्र के पुजारी। जिनका न कोई धर्म है और ना ही सिद्धांत। बस एक ही उद्देश्य जब तक जीओ साम, दाम और दंड, भेद जैसे भी हो पैसा कमाओ और मर जाओ।

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