ऋषि पंचमी पर पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों का आज भी उने परिजन करते हैं पूजन
संजय दीक्षित
13 सितंबर, 18। सद्गृहस्त संतों को लेकर जब-जब चर्चाएं होंगी तो ब्रज की द्वार देहरी का नाम भी प्रथम पंगति में नजर आएगा। पं. गया प्रसाद जी महाराज जैसी महान विभूति रस की देहरी ‘हाथरस’ के लिए एक गौरव की बात है। ठीक उन्हीं का अनुसरण करते हुए हाथरस के सद्गृहस्त संतों में नाम आता है ब्रजनाथ शरण आरोड़ा जी का।
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| बाबा गया प्रसाद जी महाराज |
जी हां! कन्हां के जन्म का प्रसंग तो पूरा विश्व जानता है, लेकिन यह हर कोई नहीं जनता होगा कि कृष्ण जन्माष्टी यानि नंद के लाला के जन्म के कुछ समय बाद ही ‘हाथरस’ नगरी का भी नामकरण संस्कार हो गया था। महत्वपूर्ण यह भी कि यह नामकरण किसी और ने नहीं बल्कि चराचर जगत के स्वामी भोलेनाथ ने किया था। पं. उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि ब्रह्मवैवर्त पुराण का अगर अध्ययन करें तो द्वापरयुग के वक्त हाथरस नगरी का प्रसंग आता है। जहां मां पार्वती की प्यास के लिए भगवान शिव ने हाथ से जल यानि रस निकाला था और इस स्थान का नाम ‘हाथरस’ रखा गया था।
इस वैदिक नगरी में ही जन्म सद्गृहस्त संत श्री ब्रजनाथ शरण अरोड़ा जी का जन्म भी इस नगरी में हुआ जहां का एक गौरवशाली इतिहास है। श्री अरोड़ा जी का शुक्रवार 14 सितंबर, 18 को जन्मदिन है। बतादें कि उनका जन्म ऋषि पंचमी को हुआ था और इस बार ऋषि पंचमी 14 सितंबर की पड़ रही है।
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| Sanjay Dixit |
क्यों खास थे ब्रजनाथ शरण अरोड़ा जीः-एक फिल्मी गाना है कि ‘मानो तो मैं गंगे मैया, ना मानो तो बहता पानी’ इसी प्रकार वह लाला के बाबा और बाबा के लाला को समझ चुके थे अर्थात मान चुके थे। यही कारण है कि आज हम उनको संत शब्द से लिखकर गौरवांन्वित हो रहे हैं। सबकुछ होते हुए भी वह धर्म और सिद्धांत के बड़े ही पक्के थे। जब लोग उनके रामजीद्वारा स्थित आवास पर जाते थे तो बैठने के लिए आशन या पट्टे यानि लकड़ी का आसन मिलता था। हवा के लिए वही पुराने पंखे जो रस्सी खींच कर चलाने पड़ते थे। यानि विद्युत चलित किसी यंत्र का प्रयोग नहीं करते थे श्री अरोड़ा जी। गर्मियों में पीने के लिए मटके का ठंडा पानी और
सात्विक जीवन को ही वह अपना धेय बना चुके थे। जब लेखनीकारों से उनका भैंटा होता तो वह भी उनसे प्रभावित होने से नहीं बचते थे। वेद और पराणों का अध्यन होते हुए भी वह कथाओं के श्रवण में विशेष रुचि रखते थे। पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों को वह सदैव सम्मान देते थे। बल्कि हर वर्ष ऋषि पंचमी पर वह उनका पूजन कर सम्मानित करते थे। उनके इस क्रम को आज भी उनके उत्तराधिकारी रघुनंदन अरोड़ व उनके अन्य परिजन जारी रखे हुए हैं। लाला के बाबा की जय, बाबा के लाला की जय।


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