हास्यावतार काका के जन्म और अवसान दिवस पर विषेश
‘जन्मे तो हंसी की किलकारी थी, अवसान पर हास्य व्यंग्य की पारी थी’
संजय दीक्षित
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| काका हाथरसी काकी के साथ प्रसन्न मुद्रा में |
Hathras 18 Septembar,18। ‘जन्मे तो हंसी की किलकारी थी, अवसान पर हास्य व्यंग्य की पारी थी।’ जी हां! ‘‘हास्यअधिनायक’’प्रभुदयाल गर्ग उर्फ ‘‘काका हाथरसी’’ के रूप में 18 सितंबर 1906 में हंसी के समुंदर ने उफान लिया था और 18 सितंबर, 1995 को कविता रूपी महासागर में सिमट गया।
हम बात इसी सख्शीयत की कर रहे हैं जो बाकई हंसी का समंदर था। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन ठहाका मारते हर व्यक्ति के चेहरे पर उनके हर रोज दर्शन होते हैं। क्योंकि काका का यही सपना था कि देश और समाज का हर व्यक्ति हंसता और मुस्कराता
रहे। अपनी एक रचना में उन्होंने इसके लिए यह संदेश भी दिया था कि ‘‘भोजन आधा पेट कर दुगना पानी पीउ। तिगुना श्रम, चौगुन हंसी, वर्ष सवासो जीउ।।’’ इस संदेश से यह भी साबित होता है कि काका केवल कवि ही नहीं, बल्कि एक अच्छे समीक्षाकार और शोधकर्ता भी थे। क्योंकि उनकी इन लाइनों को जो भी अपनाएगा वह निश्चित ही लंबी उम्र प्राप्त करेगा। यह कहावत भी है कि ‘पहला सुख निरोगी काया।’ और काका ने जो संदेश दिया है। उसमें यह ही कहा है कि आधा पेट भोजन के बाद पूरा शरीर अच्छे से भोजन को पचाएगा। पानी अधिक पीने से पेट साफ रहेगा और अधिक श्रम करने से व्यक्ति में कार्य करने की क्षमताएं बढ़ती हैं तो हंसने और मुस्काते रहने से सुख और शांति की अनूभुति होती है।
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| Sanjay Dixit |
ऐसे महान समीक्षक, शोधकर्ता और अद्भुत प्रतिभावाले प्रभुदयाल गर्ग उर्फ काका हाथरसी को देश और समाज की ओर से ‘ब्रज की द्वार देहरी उनके जन्म और अवसान के मौके पर श्रद्धांजिल समर्पित करता है।’ हास्यावतार ‘‘काका’’ मरते मरते भी एक और इतिहास लिख गए। क्योंकि उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा छोड़ी थी कि जब तक उनकी चिता जले तब तक श्मशान पर ठहाके लगने चाहिए। उनके चहेतों ने भी ऐसा ही किया और उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार हाथरस के पत्थरवाली श्मशान पर भी आए देश के कोन-कोने से कवियों ने हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया और जबतक चिता जली श्मशान ठहाकों का समुंदर बना रहा।



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