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तुंग के वीणा पर ठुमके कृष्ण, तुंग की भक्ति में झूमते रहे ब्रज की द्वार देहरी के भक्त

तुंग के वीणा पर ठुमके कृष्ण, तुंग की भक्ति में झूमते रहे ब्रज की द्वार देहरी के भक्त
-वीणा में प्रवीण तुंगविद्या सखी के वादन पर झूमते थे कृष्ण
-ब्रज की द्वार देहरी ‘‘हाथरस’’ के भक्तों ने मासिक यात्रा में जमकाया तंगविद्या के दरवार में अपना डेरा
संजय दीक्षित

Hathras 23 सितंबर 18। अष्टसखी यात्रा महोत्सव में ब्रज बरसाना यात्रा मंडल, हाथरस के महीने का तीसरा पड़ाव तुंग विद्या सखी मंदिर हुआ। तुंग विद्या के संबंध में बताया जाता है कि वीणा में प्रवीण सखी तुग विद्या बरसाने के समीप ही गावं डभारा में निवास करती हैं। 
तुंगविद्या सखी विग्रह दर्शन गांव डभारा
तुंगविद्या स्थान विशेषः-यह गांव बरसाना से दक्षित दिशा में करीब छह किलो मीटर की दूरी पर है। यहां की विशेषता यह है कि यहां पर श्री राधिकारानी सख्यिं सहित गुड्डा-गुड्डिया का खेल खेती थीं और सखी तुंगविद्या की वीणा की धुन पर श्रीकृष्ण भी नृत्य करने यानि झूमने के लिए मजबूर हो जाते थे। यहीं पर श्रीराधाकृष्ण की सखी रंगविद्या चंवर सेवा में रहती थीं। सखी तुंगविद्या के संध में कहा जाता है कि इनका जन्म भाद्रपद शुक्लपक्ष पंचमी को हुआ था। जबकि रंग देवी का जन्म भाद्रपद शुक्लपक्ष त्रयोदशी को बताया जाता है। इन सखियों की जानकारी श्रीलनारायण भट्ट कृत ब्रजोत्सव चंद्रिका के अंतर्गत विविध शास्त्रीय प्रमाणों पर आधारित है। सखी तुंगविद्या की कान्ति कर्पूर-चंदन मिश्रित कुंकुम के समान है। वे पीले रंग की सुंदर साड़ी धारण करती हैं और अपनी बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती हैं। इन्हें नीति-नाटक आदि सभी विद्याओं का ज्ञाता बताया गया है। तुंगविद्या सखी का कार्य
तुंगविद्या सखी मंदिर पर हिन्डोले दर्शन, गुड्डा-गुड़िया का व्याह
श्रीराधाकृष्ण को गीत, वाद्य आदि से प्रसन्न करना है। ऐसा बताया जाता है कि रंगदेवी सखी राधारानी से पांच दिन छोटी हैं। इनके पिता का नाम वीरभानु एवं माता का नाम सूर्यवती है, जबकि तुंगविद्या सखी राधारानी से तीन दिन बड़ी बताई जाती हैं। इनके पिता का नाम अंगद एवं माता का नाम ब्रह्मकर्णी था।
इनके संबंध में यह काव्यरचना प्रचलित है कि 
गीत-वाद्य से सेवा करती
रतन कुंड
अतिशय सरस सदा अविराम।
नीति-नाट्य-गान्धर्व-शास्त्र
निपुणा रस-आचार्या अभिराम।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
ब्रज की द्वार देहरी ‘‘हाथरस’’ नगरी कैसे बरस रही कृपाः-प्रभु की प्रेरणा और शिक्षाविद् कैलाशचंद्र वार्ष्णेय और उनकी टीम के सहयोग से आरंभ हुई ‘‘ब्रज बरसाना यात्रा, मंडल, हाथरस’’ ने निर्णय लिया कि बरसाना यात्रा के साथ ही अष्टसखी महोत्सव यानि हर वार एक सखी के मंदिर में पहुंचकर वहां के भक्तजनों को भोजन
रतन कुंड
और उनकी सेवा करेंगे। निर्णय के अनुसार अष्टसखी महोत्सव यात्रा के तहत प्रथम पड़ाव 1 अपै्रल, 18 को शुरू हुआ और ब्रज द्वार ‘‘हाथरस’’ के भक्तों ने चंदपक लता सखी के दर्शन कर प्रसादी की। इसके बाद दूसरा पड़ाव यात्रा
ने सखी इंदुलेखा पर किया और भजन-कीर्तन के साथ कन्यालांगुराओं व विप्रों को प्रसादी कराई। इसी क्रम को आगे बढ़ाया और तीसरे महीने यानि 23 सितंबर को ब्रज द्वारा यात्रा सखी तुंगविद्या के दरबार में पहुंची और जमकर आनंदानुभूति प्राप्त की।
ब्रज द्वार हाथरस के भक्तजन भजन-कीर्तन के आनंद में
यहां पर ‘‘हाथरस’’ के भक्तों ने तुंगविद्या मंदिर में गांव डभारा के भक्त भगवानों की प्रेम परिपूर्ण प्रसादी सेवा की साथ ही भजन-कीर्तन में शम्मिलित हो परमानंद की अनुभूति की। इस मौके पर पूड़ी प्रसादी, सब्जी प्रसादी, रायती प्रसादी, इमरर्ती प्रसादी का भोग लगा पहले भक्त भगवान यानि वहां के निवासियों को कराया और फिर स्वयं ग्रहण कर अपने आपको कृतार्थ किया। जिसमें पूर्वानुमान के तहत भक्ति आशीष जैन व पाकशास्त्र में प्रवीण नवीन कुमार वार्ष्णेय की टीम ने एक दिन पूर्व ही वहां पर डेरा जमा व्यवस्थाओं को स्थपित किया था जिसकी सराहना करने पर भी कम प्रतीत होती है। यहां पर उत्सव संपन्न होते ही ब्रज द्वार के भक्तों ने रस मंदिर प्रस्थान कर लाड़लीलाल जी महाराज की परिक्रमा शुरू की और रस मंदिर पर ही परिक्रमा संपन्न करने के बाद पुनः ब्रज की द्वार देहरी ‘‘हाथरस’’ नगरी में पहुंचकर उत्सव को विश्राम दिलाया।
Riport by
Sanjay Dixit
तुंगविद्या सखी विशेषः-विद्यजनों के मुताबिक पर्वत स्थित जिस चबूतरे पर कभी राधारानी ने अपनी अष्ट सखियों सहित गुड्डा-गुड्डिया खेल लीला रची थी, उसी स्थान पर आज मां तुंगविद्या सखी का मंदिर स्थापित है और इस चबूतरा स्थान को नौवारी-चौवारी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है यहां पर सच्चे मन से मथा टेकने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहां पर वही रतन कुंड भी स्थापित है, जिसका भागत में प्रसंग आता है कि
बाबा नंदराय जी द्वारा सगाई के मौके पर जो अपार रत्नों का भंडार मां राधिका रानी को दिया था, वह राधा जी ने इसी कुंड में समर्पित कर दिया था। मंदिर के पास ही तुंविद्या कुंड भी स्थापित है। खास बात यह है कि यह गांव राजस्थान की परिधी में आता है और यहां के निवासी बड़े ही विनम्र और सचरित्र और भोले हैं। यहां पर आज भी पानी, बिजली आदि परिपूर्ण व्यवस्थाएं न होने से पेयजल के लिए सख्यिं आत भी मटकियों में दूरदराज से जल लाती हैं।
संजय दीक्षित
8630588789

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