पत्रकारिता और रिपोटिंग के मध्य एक मजबूत कड़ी थे रमाकांत चतुर्वेदी
मुख से विनम्रता और कलम से कट्टरता का परियाय थे हमारे बड़े भाई रमाकांत चतुर्वेदी। आज भले ही वह हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी कुछ बातें आज भी धरी सी याद हैं। भले ही हमारे और उनके बीच कुछ बातों को लेकर मतभेद थे, लेकिन मनभेद नहीं थे। नीति और सिद्धातों पर चौबेजी और हमारे बीच एक तालमेल रहता था।
आकाशवाणी वार्ताकार के रूप में आरंभ की गई उनके द्वारा पत्रिकारिता की पारी
हिन्दी दैनिक जनतायुग, जुगनू, अमर उजाला, नीतियुद्ध के अलावा दैनिक जागरण तक रही। जहां बीमारी ने के चलते काल के कू्रर हाथों ने हमसे एक शब्दों के एक ऐसे पारखी को छीन लिया जिसकी भरपाई षायद हो नहीं सकती। क्योंकि वह पत्रकारिता और रिपोटिंग दोनों के मध्य एक मजबूत कड़ी के रूप में थे। पत्रकारिता का दौर चल रहा है। उम्मीद करते हैं कि अपने पत्रकारिता के अपने नवोदित छात्र भाइयों को भी पता चले के हमारा बीता हुआ कल क्या था और आज क्या है। अगर इस प्रकार की लेखनी और लेखों से भी पत्रकारिता जीवित रहे तो भी सकून महसूस होगा।

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