हरियाणा में दिया था श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान, दारूक हांकते थे श्रीकृष्ण का रथ
संजय दीक्षितः- 8630588789
जेल में जन्मे थे श्री कृष्ण तो बाली (ज़रा) का वाण बना था बैंकुंठ गमन का कारण, दुर्योधन के बने थे कृष्ण समधी
-श्रीकृष्ण के जन्म और सगे संबंधियों का यह है इतिहास
-हर स्थान पर अलग-अलग नाम से पुकरा जाता है कृष्ण को
-कन्हैया न डॉन है न तड़ीपार वह तो हमारा रखवाला है
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| ब्रज के नंदगांव की मनोहरी छप्पन भोग श्रृंगार दर्शन |
‘‘हाथरस’’ के रहब्बइया (रहने वाले) द्वार पाल हैं। क्योंकि हाथरस से ही ब्रज आरंभ होता है और हाथरस को ब्रज की द्वार देहरी कहा जाता है। इसलिए यहां के लोग यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते कि लोग उनको डॉन, तड़ीपार आदि कहें। यह वैसे भी गलत है और अयोग्यता का परिचायक है। इसलिए श्रद्धा के साथ भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को मनाएं और आचार संहिता के अंदर रह कर शुभकामनाएं दें।
हर प्रांत और देश में अलग-अलग नाम से विख्यात है कन्हैयाः-
उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है। राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है। महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है। उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है। बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है। दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है। गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है। असम, त्रिपुरा, नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रों में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है। मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशों में कृष्ण नाम ही विख्यात है।
इन्द्रियों को बस में रखने वाला ही होता है गोविंदः-
’गोविन्द या गोपाल में “गो“ शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में
गो का अर्थ होता है मनुष्य की इन्द्रियां। जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इन्द्रियां हां वही गोविंद है गोपाल है।
पिता के नाम पर भी है कन्हैया का नामः-
श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन “वासुदेव“ के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..
जन्म स्थानः-
श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।
भ्रातागणः-
श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।
16 हजार 108 थी पत्नियांः-
श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।
एक ही थी पटरानीः-
श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु।
कौरवों के प्रमुख के थे श्रीकृष्ण समधीः-
दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।
हथियार का नाम था सारंगः-
श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका व राध्या का नाम था ‘राधारानी’ श्री जी यानि राधिकाजी बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत 11 महीने का अंतर था। राधा जी की जन्मस्थिली रावल गांव के विद्वजनों की माने तो राधा जी का जन्म एक कमल के फूल में लपटी मिली थीं और उनके प्रादुर्यभाव के करीब 11 महीने बाद श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं मिले।
बताते हैं, श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने के लिए मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। यहाँ उन्होंने उच्च कोटि
के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याआें का ज्ञान अर्जित किया था। उनके संबंध में यह भी कहा जाता है ि कवह कुल 125 वर्ष धरती पर रहे। उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महक उठती थी। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।
श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे। श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था। श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था। श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचों बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।
श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई थी ऐसेः-
श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे में लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था, बाण लगने के पश्चात भगवान बैंकुंठ धाम को गमन कर गए थे।
हरियाणा में दिया था श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञानः-
पौराणिक ज्ञान व विद्वजनों की माने तो श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान रविवार शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मात्र 45 मिनट में दे दिया था।
चीर चोर बन दिया था गोपियों को ज्ञानः-
श्री कृष्ण ने सिर्फ एक बार बाल्यावस्था में नदी में नग्न स्नान कर रही स्त्रियों के वस्त्र चुराए थे और उन्हें अगली बार यूं खुले में नग्न-स्नान न करने की नसीहत दी थी। श्री कृष्ण के अनुसार गौ हत्या करने वाला असुर है और उसको जीने का कोई अधिकार नहीं।
श्रीकृष्ण से अवतारीः उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी
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| संजय दीक्षितः- 8630588789 |
श्री कृष्ण अवतार नहीं थे बल्कि अवतारी थे....जिसका अर्थ होता है “पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान“ न हीं उनका जन्म साधारण मनुष्य की तरह हुआ था और न ही उनकी मृत्यु ही साधारण थी।
सर्वान् धर्मान परित्यजम मामेकं शरणम् व्रज
अहम् त्वम् सर्व पापेभ्यो मोक्षस्यामी मा शुच--
( भगवद् गीता अध्याय 18 )
श्री कृष्ण गीता में कहते हैंः- “सभी धर्मो का परित्याग करके एकमात्र मेरी शरण ग्रहण करो, मैं सभी पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा,डरो मत





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