पत्रिकारिता के पुरोधा थे नरेंद्र दीपक जी, स्मृति शेष........
पत्रकारिता की पावन गंगा में जब परिवर्तन का दौर चला था। लेटर प्रेस से जब शब्द और वाक्यांशों को वह समूह जब आई थी टीम यानि कंप्यूटर पर आया ही था कि एक दुखद घटना ने हम से हमारे एक प्रवल पक्षधर को छीन लिया था।
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एक स्वागत समारोह के दौरान स्व.रमाकांत
चतुर्वेदी के साथ स्व. नरेंद्र दीपक जी |
जी हम स्व. नरेंद्र दीपक जी की बात कर रहे हैं। अंग्रेजों के खिलाफ जिन्होंने पत्रकारिता को हथियार बनाया था और जमन दिलाया था नागरिक को उन सूर्यपाल आजाद के भांजे नरेंद्र दीपक ने भी अपने मामा के गुरु पत्रिकारिता में अपना कर एक कीर्तिमान स्थापित किया था। दर असल नागरिक ही पत्रिकारिता के क्षेत्र में स्व. दीपक जी का प्रेरणा श्रोत बना था और बाद में जनता युग, जन सत्ता के अलावा अमर उजाला जैसे प्रिंट समूह में विशुद्ध पत्रिकारिता की। नरेंद्र दीपक के रूप में पत्रकारिता को हर राजनेता, हर अधिकारी और और हर व्यापारी समूह में वह सम्मान मिलता था जो पत्रकारिता को मिलना ही चाहिए था। कुछ विदंतियां अगर छोड़ दे ंतो नरेंद्र दीपक के समय तक पत्रकारिता का जिले में जल्वा जलाल रहा था। सच मायने
में तो मैने भी उनसे बहुत कुछ सीखा था। शब्दों के पारखी, वाक्यों के धनी और घटनाक्रम की प्रस्तुति तो उनकी मानो एक विशेष धरोहर थी। स्व. रमाकांत चतुर्वेदी, कृष्णबिहारी शर्मा, मनोज माहेश्वरी आदि जैसे अनगिनत पत्रकारिता के हस्ताक्षर उन्होंने ही हिन्दी पत्रिकारिता के क्षेत्र में छोड़े।
एक लंबी बीमारी के बाद ही मौत के क्रूर हाथों ने पत्रकारिता के पुरोधा स्व. नरेंद्र दीपक जी को हमसे छीन लिया। हम नमन करते हैं ऐसी पत्रिकारिता के धनी को जिसने पत्रकारिता की सूचिता को ऊंचाइयों तक पहुंचाया और आशा करते हैं कि आप प्रिंट व मीडिया के छात्रों को उनसे सबक लेना चाहिए। आत्मसम्मान के साथ यर्थाता को सामने रखना चाहिए।
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