स्वेत श्रृंगार में देहरी के ठाकुर ने दिए शरद को दर्शन
-प्रभात फेरियों में गूंजा हरिनाम, चरणामृत और खीर प्रसादी का रहा हंडा
Hathras 24 October, 18. ब्रज की द्वार देहरी हाथरस नगरी में शरद पूर्णिमा महोत्सव की धूम रही। भोर की
किरण फूटने से पूर्व ही तारों की छांव में भक्त कृष्ण व बलदाऊ की परिक्रमा को निकल पड़े। मंदिरों में प्रभु के स्वेत श्रृंगार सजाए गए और खीर व चरणामृत की प्रसादी का वितरण हुआ। बीती देर रात भी मंदिरों में खीर प्रसादी का वितरण हुआ था।
ब्रज देहरी रस की नगरी हाथरस में बुधवार की सुबह भी हरिनाम और घंटा-घड़ियालों की आवाज के साथ हुई। मौका शरद पूर्णिमा का था। किला स्थित ऐतिहासिक मंदिर श्रीदाऊजी महाराज में मंगला आरती के बाद परिक्रमा लगाई गई। जबकि नगर के प्रसिद्ध मंदिर ठा.कन्हैयालाल जी महाराज में भी मंगला आरती के बाद भगवान के स्वेत श्रृंगार के दर्शन कराए गए। इसके बाद यहां की प्रसिद्ध सप्तपरिक्रमा प्रभात फेरी का आरंभ हुआ। कहावत है जो व्यक्ति गोबर्धन की परिक्रमा नहीं लगा पाते वह पूर्णमासी के दिन ठा.कन्हैयालाल जी की सात परिक्रमा लगालें तो वही फल मिलता है जो गोबर्धन की परिक्रमा का होता है। परिक्रमा के बाद चरणामृत प्रसादी और खीर प्रसादी का वितरण किया
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| परिक्रमा लगाते भक्त जन |
क्या महत्व है शरद पूर्णिमा का
आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। इस साल 2018 में शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को मनाई जा रही है। शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन चन्द्रमा व भगवान विष्णु का पूजन, व्रत कथा पढ़ी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। इस मौके पर आइए जानते हैं इसके बारे में...
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| दक्षिणमुखी हनुमानी महाराज सासनी गेट, हाथरस |
क्या है पौराणिक एवं प्रचलित कथा :-
एक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने और महात्व के संबध्ां में जागरूकता फेलाई और लोगों से इस व्रत को करने के लिए कहलवाया।



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