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Showing posts from November, 2018

विदेश में रह खड़क सिंह ने दिलाया स्वराज्य

जयंती पर विशेष...(01 दिसंबर )............. विदेश में रह खड़क सिंह ने दिलाया स्वराज्य -राज्य, वैभव, पत्नी और पुत्र सभी का त्याग फिर भी ‘भारत रत्न’ नहीं संजय दीक्षित हाथरस। जिसने देश की आजादी के लिए विदेश में ‘आजाद हिन्द फौज’ बनाई। अफगान से अंग्रेजों पर आक्रमण किए। राज्य छोड़ा, सुख छोड़ा, पत्नी और पुत्र की मौत को बर्दाश्त किया, लेकिन देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की किसी सौगात को नहीं स्वीकारा और अंतिम दौर तक संघर्ष कर अंग्रेजी हकूमत को हिलाकर रख देने वाले महान सपूत की जयंती है आज। भले ही ऐसे महान सपूत को ‘भारत रत्न’ से नहीं नवाजा गया, लेकिन देश से प्रेम करने वालों के ह्दय में आज भी खड़क सिंह यानि राजा महेंद्रप्रताप सम्मान और श्रद्धा के देवता के रूप में निवास करते हैं। जिन्होंने जिन्दा रहकर के भी अपने देश के लिए जीवन में हजरों बार मौत का कष्ट सहा था उन्हीं राजा महेंद्रप्रताप का जन्म अगहन सुदी संवत् 1943 (01 दिसंबर 1986) में मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के यहां हुआ था। वह हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के यहां पर बतौर दत्तकपुत्र गोद लिए गए थे। जिनकी प्रारंभिक शिक्षा हाथरस में ही ह...

ओज के आका, हास्य-व्यंग्य के काका की जयंती पर नमन

ओज के आका, हास्य-व्यंग्य के काका की जयंती पर नमन -शर्त पर कूएं में कूदे तो पड़गया देवीदास से नाम निर्भय -दिल्ली में गूंजा था इंदिरा मां रोटी दे, इंदिरा मां रोटी दे -स्पष्टवक्ता और बेबाक कविता फिर भी सम्मान नहीं बाबा निर्भयानंद के साथ साहित्य सम्मान से सम्मानित  गोपाल चतुर्वेदी सेनानी मदनलाल ‘आजाद’ हाथरस। ओज के महापंड़ितों के संबंध में जब-जब चर्चाएं होंगी तो प्रथम पंक्ति में रस की नगरी ‘हाथरस’ के बाबा निर्भयानंद का नाम सबसे ऊपर आएगा। लंबी और श्वेत-धवल दाढ़ी। भगवा कुर्ता-लुंगी और चमती आंखे और ऊंचा ललाट बाबा के व्यक्ति के अंग थे। माइक पर जब बिना कलम और कागज के जो हाजिर जवाबी निकलती थी तो चलते कदम भी रुक जाते थे। वाकई काव्य की जो छाप छोड़ी उसका जमाना आज भी कायल है। जयंती के मौके पर नमन है ओज के महाविद्यर्थी को। हिन्दी काव्य के ओज विधा के महायोधा बाबा निर्भयानंद जी की आज जन्मजयंती है। जो हमने देखा था बाबा निर्भयानंद  उसको अपने शब्दों में बयां कर रहे हैं कि बाबा ने खुद नए शब्द गढ़े और न सजोकर रखे। मौके पर ही हाजिर जबावी का वह नायाव हीरा थे कि रचनाओं को नई विधा दे डा...

उठों देवा बैठों देवा पांवरियां चटकाओ देवा....

उठों देवा बैठों देवा पांवरियां चटकाओ देवा.... -किसी ने देव प्रबोधनी, देवोत्थान, देव उठान तो किसी ने देव दीपावली के रूप में मनाया पर्व -शेष शेया चार माह से सोए प्रभु लक्ष्मीनारायण ने खोली आंखों तो देवधुन, वेदमंत्र और प्रभुपूजन का दौर चल पड़ा हाथरस। रुकी शहनाइयों की गूंज कई धुनों में गूंज उठी, तो वेदमंत्रों के उच्चारण से माहौल सनातनी रंग में रंग गया। सूरज की किरण फूटते ही देवालयों में साफ-सफाई और प्रभु श्रृंगार का दौर चल पड़ा तो चहुंच और उठो देवा, बेठो देवा पांवरियां चटकाओ देवा की गूंज गुंजायमान हो उठी। मौका था प्रभु श्रीलक्ष्मीनारायण का क्षीर सागर में निंद्रा से आंखे खोलने का। देवोत्थान महापर्व के मौके पर पूरे ब्रह्माण के साथ-साथ ब्रज की द्वार देहरी रसकी नगरी ‘हाथरस’ में देव प्रबोधनी एकादशी महापर्व की गूंज गूंजी। घर-घर और मंदिर-मंदिर में उठो देवा, बैठो देवा, पांवरियां चटकाओ देवा के स्वर सुनाई दिए। कार्यक्रम की शुरूआत देवोत्थान पर्व की ब्रह्मबेला में मंगला आरती के साथ हुई। जिसमें खासकर ऐतिहासिक मंदिर श्रीदाऊ जी महाराज मंदिर, रूई की मंडी स्थित ठा.श्री कन्हैयालाल जी महाराज म...

कृष्ण के साथ जन्मे हाथरस में राम के लौटने पर मनाई थीं खुशियां

धन से शुरू होने वाले पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व की हाथरस में द्वतिया तक रहेगी धूम -इन पांचों से धनतेरस, दीपावली पूजन, गोबर्धन पूजा, भैयादूज से मिलकर बनता है पांच दिवसीय महापर्व -प्रभु राम के अयोध्या लौटने पर मनाया गया था महादीपदान का पर्व Hathras 05 Nov.। दीपों के महापर्व पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व का आरंभ सोमवार को प्रातः बेला से हो गई।   मिट्टी के ल़़क्ष्मी गणेश जी मूर्तियां बेचता  दुकानदार और खरीदी करते लोग सर्वधर्म समभाव की बरसों से जिस परंपरा की प्रतिक रही है ब्रज की द्वार देहरी रस की नगरी ‘हाथरस’ इस बार भी इस महापर्व के प्रारंभ पर दिखई दी। जब पर्व का उठान हुआ तो घरों में घंटरिया, मंदिरों में घंटा-घड़िया और संखनाद की धून गूंजी तो मस्जिदनों में प्रथम नमाज की अजान से धनतेरस का स्वागत किया।  पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व की शुरू आत पूर्व वत सनातन धर्मी परंपराओं के अनुरूप सोमवार को प्रारंभिक बेला में हो गई। बिदित हो कि जब भक्तों के भगवान प्रभु राम जब वनगमन से लौटे थे तो पूरवासियों ने दीपदान किया था। आतिशबाजी चला उनके आगमन पर स्वागत किया था। तभी से पांच दिवसीय ...