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विदेश में रह खड़क सिंह ने दिलाया स्वराज्य

जयंती पर विशेष...(01 दिसंबर ).............
विदेश में रह खड़क सिंह ने दिलाया स्वराज्य
-राज्य, वैभव, पत्नी और पुत्र सभी का त्याग फिर भी ‘भारत रत्न’ नहीं
संजय दीक्षित
हाथरस। जिसने देश की आजादी के लिए विदेश में ‘आजाद हिन्द फौज’ बनाई। अफगान से अंग्रेजों पर आक्रमण किए। राज्य छोड़ा, सुख छोड़ा, पत्नी और पुत्र की मौत को बर्दाश्त किया, लेकिन देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की किसी सौगात को नहीं स्वीकारा और अंतिम दौर तक संघर्ष कर अंग्रेजी हकूमत को हिलाकर रख देने वाले महान सपूत की जयंती है आज।
भले ही ऐसे महान सपूत को ‘भारत रत्न’ से नहीं नवाजा गया, लेकिन देश से प्रेम करने वालों के ह्दय में आज भी खड़क सिंह यानि राजा महेंद्रप्रताप सम्मान और श्रद्धा के देवता के रूप में निवास करते हैं। जिन्होंने जिन्दा रहकर के भी अपने देश के लिए जीवन में हजरों बार मौत का कष्ट सहा था उन्हीं राजा महेंद्रप्रताप का जन्म अगहन सुदी संवत् 1943 (01 दिसंबर 1986) में मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के यहां हुआ था। वह हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के यहां पर बतौर दत्तकपुत्र गोद लिए गए थे। जिनकी प्रारंभिक शिक्षा हाथरस में ही हुई और आगे की पढ़ाई के लिए वह अलीगढ़ पहुंचे।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी से एक सिस्टाचार भेंट के दौरान
राजा महेंद्रप्रताप सिंह
अलीगढ़ से ही हाईस्कूल में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में बीए की प्रथम वर्ष की शिक्षा मोहम्मदन ओरिऐंटल कॉलेज से प्राप्त की। अपने छात्र जीवन से ही आजादी की लड़ाई में कूदने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। इसी दौरान उनका विवाह महाराजा जिंद की छोटी बहन बलवीर कौर से हुआ और देश की आजादी के लिए ही वह अपनी रानी को रोता-बिलखता छोड़कर अंग्रेजों से आजादी की जंग में बिना पासपोर्ट के ही विदेश चले गए। इटालियन जहाज से लंदन के बाद स्वीट्जरलैंड, इटली होते हुए जर्मनी पहुंचे। यहां से
भारत सरकार द्वारा राजा महेंद्रप्रताप
सिंह के सम्मान में जारी डाक टिकट
अन्य देशभक्तों से मुलाकात के बाद वह 2 अक्तूबर, 1915 को अफगानिस्तान में वहां के बादशाह ने उनका शाही मेहमान के रूप में स्वागत किया। वहीं पर 1916 के प्रारंभ में ही राजा महेंद्रप्रताप ने काबुल में ‘‘प्रोवीजन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया’’ (आजाद हिन्द सरकार) की स्थापना की और भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। कई बार अंग्रेज सेनाओं पर आजाद हिन्द फौज के सेनिकों के साथ आक्रमण किया और अंग्रेजी हकूमत को हिलाकर रख दिया और मजबूरन कांग्रेस से समझौता। इसके बाद वह 1946-47 में स्वदेश लौटे। आजादी के इस मसीहा को मौत ने 29 अपै्रल, 1979 को अपनी गोद में चिरचिन्द्रा के रूप में सुला लिया। जय हिन्द।

आजादी की जंग में जिंदगी का सफरनामाः-
01. 01 दिसंबर 1986 में हाथरस के मुरसान में जन्म
02. कांग्रेस के कलकत्ता सम्मेलन में 1906 में दिया स्वदेशी का नारा
03. 1906 में ही जलाई थी राजा सहाब ने विदेशी वस्तुओं की होली
मथुरा यमुना तट स्थित राजा द्वारा
 स्थापति प्रेम महाविद्यालय
04. 1914 में देहरादून के राजर्षि पुरुषोत्तमदास से मुलाकात कर विदेशों में रह कर आजादी का लिया निर्णय
05. 17 अगस्त 1914 रानी, राज्य और सभी वैभव छोड़े
06. 19 अगस्त 1914 को बिना पासपोर्ट के ही इटालियन जहाज में बैठै
07. सितंबर में लंदन पहुंचे जहां से स्वीट्जरलैंड, इटली होते हुए जर्मनी पहुंचे। 
08. जर्मनी में कैसर मुलाकात और राजा का किया गया राजकीय सम्मान।
09. 2 अक्तूबर, 1915 को अफकानिस्तान पहुंचे।
10. कबुल में 1916 राजा सहाब ‘‘प्रोवीजन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया’’ यानि (आजाद हिन्द सरकार) की स्थापना और प्रथम राष्ट्रपति बने। 
11. जहां पर उन्होंने छह हजार अफगान सैनिकों की एक सेना को संगठित कर अंग्रेजी सरकार पर आक्रमण किया। 
12. 1917 में वह अफगानिस्तान से जापान गए। जहां पर भी उन्होंने पुनः ‘‘आजाद हिन्द सेना’’ की स्थापना की और जापन से मिलकर अंग्रेजों पर आक्रमण किए।
13. 1923 में वायसराय कौंसिल में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘बागी’ घोषित किया।
14. इस वर्ष उनकी देहरादून, मथुरा, अलीगढ़, मुरसान और हाथरस की संपत्तियों को अंग्रेजी सरकार ने जब्त किया।
15. 1926 में जेनेवा की यात्रा के वक्त राजा महेंद्रप्रताप से पं.जवाहरलाल नेहरू ने मुलाकात की और आपना सौभाग्य माना
16. इसके बाद वह पुनः जर्मनी गए। जहां से तुर्की और फिर बगदाद होते हुए अफगानिस्तान पहुंचे। 
17. इसके बाद रोम्यां में रोली से मिले, सोवियत रूस जाकर क्रेमिलिन में लेनिन से मिले। वह लगातार विदेशियों से सहयोग कर अंग्रेजी सरकार को भगाने में लगे रहे। 
18. 1925 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया।
19. 1947-46 में स्वदेश लोटी
20. 29 अपै्रल, 1979 को देश का यह महान सपूत चिरनिंद्रा में सो गया।

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