उठों देवा बैठों देवा पांवरियां चटकाओ देवा....
-किसी ने देव प्रबोधनी, देवोत्थान, देव उठान तो किसी ने देव दीपावली के रूप में मनाया पर्व
-शेष शेया चार माह से सोए प्रभु लक्ष्मीनारायण ने खोली आंखों तो देवधुन, वेदमंत्र और प्रभुपूजन का दौर चल पड़ा
हाथरस। रुकी शहनाइयों की गूंज कई धुनों में गूंज उठी, तो वेदमंत्रों के उच्चारण से माहौल सनातनी रंग में रंग गया। सूरज की किरण फूटते ही देवालयों में साफ-सफाई और प्रभु श्रृंगार का दौर चल पड़ा तो चहुंच और उठो देवा, बेठो देवा पांवरियां चटकाओ देवा की गूंज गुंजायमान हो उठी।
मौका था प्रभु श्रीलक्ष्मीनारायण का क्षीर सागर में निंद्रा से आंखे खोलने का। देवोत्थान महापर्व के मौके पर पूरे ब्रह्माण के साथ-साथ ब्रज की द्वार देहरी रसकी नगरी ‘हाथरस’ में देव प्रबोधनी एकादशी महापर्व की गूंज गूंजी। घर-घर और मंदिर-मंदिर में उठो देवा, बैठो देवा, पांवरियां चटकाओ देवा के स्वर सुनाई दिए। कार्यक्रम की शुरूआत देवोत्थान पर्व की ब्रह्मबेला में मंगला आरती के साथ हुई। जिसमें खासकर ऐतिहासिक मंदिर श्रीदाऊ जी महाराज मंदिर, रूई की मंडी स्थित ठा.श्री कन्हैयालाल जी महाराज मंदिर, अलीगढ़ रोड पर नवग्रह मंदिर, सासनी गेट पर दक्षिणमुखी हनुमान जी मंदिर, तालाब चौराहे पर श्रीराम दरबार मंदिर आदि नगर के प्रमुख मंदिरों के साथ-साथ सभी देवालयों में मंगला आरती से देवोत्थान की शुरूआत हो गई।
जबकि सुबह से ही स्नान आदि से निवृत्त होकर महिलाओं ने घरों में खड़िया और गेरू से रंगोलियां सजाई। जबकि पूजा सामग्री में गन्ना, सिंघाड़ा, गुड़, बताशे, रोरी, चावल के अलावा ऋतु की सभी सब्जियां, फूलों में बेला और सरजमुखी के फूल आदि सामग्री रखकर जहां पर सुबह देव उठाए जाते हैं वहां पर सुबह और जहां शाम को वहां पर शाम को देवों को उठाया गया। कुछ ने सुबह तो कुछ ने देवोउत्थान के बाद मंदिरों में पहुंचकर प्रभु श्रीलक्ष्मीनारायण के दर्शन कर घर और परिवार में सुख, वैभव और सुमिति के वास करने की प्रार्थना की।
दूसरी ओर इस सबसे पूर्व भोर की किरण फूटते ही ठेल और ढकेल पर पूजा सामग्री बेचने वालों की आवाजों ने भी यह अहसास करा दिया था कि आज देवोत्थान एकादशी है। जबकि गन्ना विक्रताओं ने भी इस मौके पर जमकर दाम बटोरे। जो पांच रुपये का गन्ना था उसमें एक-एक गन्ना का भाव 20 से 40 रुपये तक वसूला। पूजा की पुढ़िया भी दोपहर तक 10 से 20 रुपये तक बिक गई। जबकि श्रद्धालुओं ने इस मौके पर परिक्रमा भी लगाई। कुछ लोगों ने गोशाला पहुंचकर गिरधर की परिक्रमा लगाई तो कुछ भक्त देवोत्थान की पूर्व संध्या पर ही ब्रज की ओर निकल गए। किसी ने गोबर्धन की तो किसी ने 18 कोश वाली परिजक्रमा जिसमें वृंदावन, मथुरा आदि सभी ब्रज के मुख्य-मुख्य स्थानों की परिक्रमा लगाते हुए कंस टीले के बाद मथुरा के विश्रामघाट यमुना तट पर पहुंचकर संपन्न की।



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