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द्वार के भक्तों ने ब्रज पहुंच मनाया ललिता सखी महोत्सव

द्वार के भक्तों ने ब्रज पहुंच मनाया ललिता सखी महोत्सव
-अष्ट सखी महोत्सव में पांच वां पढ़ाव हुआ पूरा, अगला पढ़ाव होगा विशाखा सखी
संजय दीक्षित
ललिता सखी मंदिर में बिराजित श्री राधाकृष्ण व ललिता जी का विग्रह
हाथरस/बरसाना। ब्रज की द्वार देहरी रस की नगरी हाथरस से संचालित ब्रज बरसाना यात्रा क्रम जारी है। जिसकके तहत चल रहे अष्ट सखी महोत्सव में इस बार भी जमकर राधारस नाम की बारिश हुई। मौका 30 दिसंबर, 18 दिन रविवार का
था। स्थान था ब्रजमंडल के ऊंचागाव में ललिता अटोर नामक पहाड़ी पर बने भव्य ललिता मंदिर। साक्षी बने ब्रज द्वार और ब्रज मंडल के भक्तजन। महौल में गूंजी जमकर ढोलक की थाप, मजीरों की टंकार और ध्वनी विस्तारक यंत्र में भक्तों की वाणी। जय श्री राधे।
श्रीलनारायण भट्टद्वारा 563 पहले पत्थर प्राकट्य की गई प्रतिमाएं

इस बार की यात्रा ऐसे हुई शुरूः-
यात्रा के प्रमुख संचालक शिक्षाविद् कैलाशचंद्र वार्ष्णेय के नेतृत्व में दो बसों सहित तीन वाहनों में दर्जनों भक्तों ने ब्रज द्वार से प्रातः प्रस्थान किया। जिसका मुरसान में पीपलवाली मैया पर विश्राम हुआ। मथुरा के बाद सभी भक्तों को बालभोग प्रसादी दी गई और बरसाने के ऊंचागाव में ललिता अटोर नामक पहाड़ी पर बने भव्य ललिता मंदिर पर पहुंचकर सखी माहोत्सव में जयघोष किए। भक्ति विद्वान पं.भोलाशंकर शर्मा के सानिध्य में भक्तिभजन कार्यक्रम में जमकर घंटों राधानाम रस का भक्तों ने पान किया। जबकि सखी प्रसादी की सेवा ब्रजवासियों को कर के हाथरस के भक्तों ने अपने आपको कृतार्थ किया।
श्री ललिता सखीः-
ललिता सखी मंदिर, दर्शन करते भक्त
ललिता सखी श्रीराधा की सबसे प्रिय सखी हैं। ललिता सखी के श्री अंगों की कांति गोरोचन (पीतवर्ण का सुगन्धित द्रव्य) के समान है। वे मोरपंख के समान चित्रित साड़ी पहनती हैं। वे सभी सखियों की गुरुरूपा हैं। श्रीललिता इन्द्रजाल में निपुण हैं। फूलों की कला में कुशल वे श्रीराधामाधव की कुंजलीला के लिए फूलों के सुन्दर चंदोबे तैयार करती हैं। ये श्रीराधा को ताम्बूल (पान का बीड़ा) देने की सेवा करती हैं। इस सेवा से वे अत्यन्त ललित (सुन्दर) हो गयीं हैं। इनका मूल नाम अनुराधा है। ललिता जी की माता का नाम सादनी और पिता का नाम विशोक हैं। स्वकिया भक्ति में पति का नाम गोपनीय रखा जाता है। परकिया भाव में ललिता के पति काक नाम भैरव गोप है, जो गोवर्धन गोप के सखा थे।
राधाकृष्ण के बीच में प्रेम प्रकट करने वाली सखीं हैं ललिताः-
सखी महोतसव पर पंगत में बैठ प्रसादी लेते भक्त
ब्रजाचार्य श्रीनारायण भट्ट व गौड़िया आचार्य रूप गोस्वामी के मुताबिक ललिता सखी राधा-कृष्ण के बीच में प्रेम जगाने वाली प्रेमाचार्य हैं। ललिता का मूल नाम अनुराधा है। ललिता का स्वभाव वाम प्रखरा है, वाम प्रखरा का मतलब सीघे को उल्टा करना और उल्टे को सीधा करना। ललिताजी की स्तुति में रूप गोस्वामी की ओर से रचित ललिताष्टक में वर्णन है। राधा को कृष्ण से मिलने के लिए नीली और केसरिया साड़ी पहनाती है और स्वयं मयूरपंखी पोशाक धारण करती है।
अब तक ललिता सखी के 5246 जन्मोत्सव 565 प्राकट्योत्सव मनाए जा चुके हैंः-
मथुरा जिले में बरसाना के ऊंचागाव में ललिता अटोर नामक पहाड़ी पर बने भव्य ललिता मंदिर में बीते 15 नवंबर, 18 दिन शनिवार को ललिता सखी का जन्म अभिषेक कराकर 5246 वा जन्मोत्सव मनाया गया। सेवायत ब्रजाचार्य पीठ के पीठाधीश्वर गोस्वामी उपेंद्र नारायण भट्ट, ललिता पीठ के पीठाधीश्वर गोस्वामी
कृष्णनंद तैलंग, ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्याम राज भट्ट, सर्वेश भट्ट, रोहित भट्ट, अरूण भट्ट आदि ने ललिता सखी के श्रीविग्रह को घी, दूध, दही, शहद, बूरा, केसर, जटामसी, चंदन चूरा, नागरमोथा, अगर-तगर, पंच मेवा, गुलाब जल, इत्र, गो घृत आदि के पंचामृत से अभिषेक कराया गया।
ललिता जी के मंदिर का निर्माण अकबरकालीन बताया जाता हैः-
तथ्यों को माने तो ललिता सखी के मंदिर को अकबरकालीन बताया जाता है। जो ऊंचागाव स्थित ललिता अटा अटोर नामक पहाड़ी पर बना है। जिसका निर्माण अकबर के राजस्व मंत्री टोडरमल ने श्रीलनारायण भट्ट के आदेश से कराया था। आज से 563 वर्ष पहले श्रीलनारायण भट्ट तमिलनाडु के मुद्राईपतनम से आये थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ही ललिता जी की दिव्य प्रतिमा को प्राकट्य किया था। जो आज भी मंदिर में पत्थर पर प्रकट हैं।

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