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एक मार्च था शूरवीरता का दिन, गद्दारों ने पलट दी थी बाजी

एक मार्च पर विशेष................
एक मार्च था शूरवीरता का दिन, गद्दारों ने पलट दी थी बाजी
-शरणागतों को नहीं त्यागा, राजा ने दिया अंग्रेजों को मुंह तोड़ जबाव

हाथरस 01 March, 2019। सत्यनिष्ठा, कर्म निष्ठा और शरणगतों के रक्षकों के संबंध में जब-जब चर्चाएं होंगी तो हाथरस के राजा दयाराम सिंह ठेनुआं का नाम चर्मोत्सकर्ष पर होगा। क्योंकि इतिहास के पन्नों में दबी कुछ सच्चाइयों को कुरेंदे तो फिर से गद्दारों की गद्दारी से मन व्यतिथ होता है तो शूरता, वीरता और कर्मनिष्ठता की त्रिवैणी के दर्शन भी राजा दयाराम के रूप में होते हैं। राजा दयाराम का अंग्रेजों से युद्ध के इतिहास में 01 मार्च, 1817 एक अंतिम दिन के रूप में दिखाई देता है।
प्रजातंत्र के हितैषी और गरीब, मजलूम व शरण में आए की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहने वाले राजा दयाराम सिंह ठेनुआ की कुशल शासन नीति और हाथरस राज्य की बड़ती शाख को अंग्रेजी
राजा दयाराम सिंह ठेनुआ के किले का मुख्य द्वार रहे गेट का फाइल चित्र
हुकूमत पचा नहीं पा रही थी। अंत में वर्ष 1806 में इस्टइंडिया कंपनी के शासकों ने राजा दयाराम पर अंग्रेजी शासन के विरूद्ध कार्य करने, राजा होल्कर मेलमिलाप, अंग्रेजों के विरोधियों को अपनी शरण में रखने व अंग्रेजी सामराज्य में देय न देने को अपनी शाख व गौरव समझने के आरोप लगाए। अंग्रेज लगातार राजा के शरणागतों को त्यागने की मांग करते रहे। हालांकि 1816 अंग्रेजी हुकूमत का पंजाब व नैपाल के साथ अन्य क्षेत्रों में विस्तार हुआ तो अंग्रेजों ने हाथरस को भी अपने सामराज्य मिलने की रणनीति बनाई। इसी दौरान अंग्रेज अधिकारी मिस्टर मारजोरी बैंक्स ने राजा दयाराम सिंह ठेनुआ से चार ब्रिटिश विरोधियों को उन्हें सौंपने का फरमान जारी किया, लेकिन राजा ने अंग्रेजों के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
राजा दयाराम सिंह ठेनुआ दूरदृष्टा भी थे और वह समझ गए थे कि अब अंग्रेजों से युद्ध को टाला नहीं जा सकता। चतुर राजा ने जमकर युद्ध की तैयारियां की। समय बदल रहा था। इसलिए वक्त के मुताबिक उन्होंने अपने युद्ध कोठारों को बारूद के विशाल भंडार से भर दिया। साथ ही रसद की भरपूर व्यवस्था और अंग्रेजों से युद्ध को लेकर अभ्यास की गंभीता के साथ शुरू कर दिया। राजा ने एक वर्ष में जमकर तैयारियां कर लीं। जबकि अंग्रेजों ने रणनीति बनाकर वर्ष 1817 फरवरी में हाथरस किले की घेराबंदी शुरू कर दी। साथ ही एक दूत के माध्यम से राजा को आत्मसमर्पण का प्रस्ताव भी भेजा। हालांकि राजा मुरसान ने अंग्रेजों के समस्त घुटने टेक
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दिए। जबकि अंग्रेजी सेनाओं ने जनरज मार्शन के नेतृत्व में 17 फरवरी को हाथरस किले की सीमाओं को सीज कर दिया। इस 11 दिन के युद्ध में अंग्रजों को 01 मार्च, 1817 में राजा दयाराम सिंह ठेनुआ के कुशल नेतृत्व और वीरता के आगे घुटने टेकने पड़े और अंग्रेजी सेनाओं को घेराबंदी तोड़कर पीछे हटना पड़ा। यह देखकर चहुंओर हर्ष और आनंद छा गया, लेकिन वही हुआ जो हर वार होता था धोखा और षड़यंत्र 02 मार्च को गद्दार द्वारा लगाई गई बारूद खाने में आग के आगले जीती हुई बाजी छोड़कर हाथरस छोड़ना पड़ा था। प्रो.चिंतामणि शुक्ल का साहित्यक इतिहास बताता है कि राजा ने अपनी शरण में आए मित्रों को नहीं छोड़ा, भले ही देश व राज पाट त्यागना स्वीकार किया। साथ ही 01 मार्च, 1817 राजा की वीरता अंतिम दिन था।

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