वर्दी के वीर की पहल लाई रंग मां की गोद में लौटी भावना
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| लापता हुई मासूम भावना मिलने के बाद अपने पिता की गोद में |
हाथरस। वर्दी के वीर की बारीक सोच ने मां की ममता को फिर से गोद में गोंद सा सकून दे दिया। घटना को आप भले की एक मामूली समझ सकते हैं, लेकिन इसकी गहराई में जाने से यह पता चलता है कि जब मां की गोद से उसकी मासूम चली जाय तो उस मां का क्या दर्द होता है। आप समझें या न समझें, लेकिन इसको विश्वेश्वर ने समझा और उस दुखियारी मां को फिर से ममता लौटाई।
घटना का वक्त देर रात तकरीबन दो बजे का है और स्थान था हाथरस जंक्शन रेलवे स्टेशन का प्रतीक्षालय था। घटना थी एक मासूम बच्ची का आचानक प्रतीक्षालय से गायब हो जाना। बस अब आपको पूरी कहानी का सार समझ में आ गया होगा। घटना का आरंभ मां के विलापों से होता है। जैसे ही धर्मपाल की पत्नी जब चीखती है कि बेटी भावना कहां है। यहां यह बता देना आवश्यक है कि धर्मपाल यहीं हाथरस जंक्शन के गांव दरियापुर का रहने वाला है और परिवार पालने के लिए वह रोजगार चंडीगढ़ में करता है। बताते हैं, वह सोमवार की देर रात हाथरस जंक्शन रेलवे स्टेशन पर ऊंचाहार एक्सप्रेस से उतरा था। चूंकि रात ज्यादा थी इसलिए गांव के लिए नहीं निकला। उसकी तीन वर्षी बच्ची भावना खेलते-खेलते कब प्रतीक्षालय से बाहर निकल आई। न धर्मपाल को पता चला और ना हीं उसकी पत्नी को। सामान सेट किया और थोड़ी थकामन दूर हुई तो धर्मपाल की पत्नी की नजर बच्ची पर जाती है, लेकिन प्रतीक्षालय में बच्ची नहीं थी। वह चीखती है भावना कहां है। काफी
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तलाश के बाद भी बच्ची नहीं मिली तो धर्मपाल की पत्नी बुरी तरह चीखती है और चिल्लाती है, बच्ची को नाम से पुकार कर इधर से उधर दौड़ती है। यह जानकारी होते ही मौके पर चौकी प्रभारी विश्वेश्वर पहुंचते हैं और मां की ममता को देखकर द्रवित हो जाते हैं। वह हमराहों के साथ पहले तो पूरे रेलवे स्टेशन पर और फिर आसपास का क्षेत्र खंगालते हैं, लेकिन जब उनको सफलता नहीं मिलती है तो वह बायरलेस सेट पर इस सूचना को प्रसारित कराते हैं। इस दौरान काफी समय व्यतीत हो जाता है। इधर बच्ची चूंकि अबोध थी और स्टेशन से निकल क रवह गांव दरियापुर की ओर निकाल जाती है। सुबह जब कुछ ग्रामीणों को बच्ची की रोने के आवाज आती है तो वह उसको लेकर हाथरस जंक्शन थाने पहुंचते हैं। सूचना जब विश्वेश्वर पर आती है तो वह धर्मपाल को लेकर थाने पहुंचता है और जब बच्ची को देखकर धर्मपाल की धड़कने थमती हैं तो विश्वेश्वर के चेहरे पर भी एक अनौखी चमक आती है। विश्वेश्वर ने ही जब भावना को उसकी मां की गोद में दिया तो वह उसको ऐसे चूमने लगी जैसे हाल की व्याही गाय अपने बच्चे को चाटती है।


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