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ड्रैगन (चीन) को फिर पछाड़ा हाथरस ने, गुलाल की बंपर सेल

विश्व में 72 प्रतिशत हाथरस के गुलाल से खेली जाती है होली
-फिर भी कंपटीशन में लाभांश हुआ कम, सरकार की मदद से हो सकता है गुलाल उद्योग को लाभ
-फिल्मी मुंबई नगरिया में पूरे वर्ष भर लगता है हाथरस का गुलाल
-तरफरार के चिरंजीलाल ने बनाया था 150 वर्ष पूर्व हाथरस में गुलाल
संजय दीक्षित
विश्वप्रसिद्ध बरसाना मंदिर से हाथरस के
गुलाल को भक्तों पर उड़ेलते श्रद्धालु
हाथरस। ‘‘होली के दिन खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं’’ इस गाने के बोलों से तो आप समझ ही गए होंगे कि यह किस ‘फल्मा’ है। इस गाने पर जो गुलाल और अबीर बिखेरा गया था वह भी हाथरस का ही था।
जी हां फिल्म शोले को बने एक अरसा बीत गया, लेकिन आज भी जब-जब यह गाना साउंडों पर होता है या फिर इसकी वीडियो चलती दिखाई देती है तो निश्चित तौर पर होली के साथ हाथरस की याद आ ही जाती है, लेकिन यह अफसोस की बात है कि दुनिया को रंगबिरंगा करने वाला शहर ही बेरंग है। वही पुराना ढर्रा और जूझझते रंगकारोबारियों को सरकार की तरफ से कोई सहयोग और सरोकार नहीं रखा गया है। उसमें भी असली पर हाबी नकली और इस उद्योग के लिए घातक साबित हो रहा है।
अपने 150 वर्ष पूरे कर रहा है हाथरस का गुलाल उद्योग
जानकारों की माने तो आज से ठीक एक सौ पचास वर्ष पूर्व गांव तरफरा के चिरंजीलाल ने 15 मार्च को गुलाल बनाकर तैयार किया था। बताते हैं, उन्होंने टेसू के रंग, मेंहदी के पत्ते और हल्दी आदि से महीन यमुनारत व बिना चिकनी मिट्टी के
महीनों पहले तैयार पीले और रानी 
कलर में तैयार सूखता गुलाल
सहयोग से गुलाल तैयार किया था। हालांकि इससे पूर्व गुलाल का जिक्र बहुत कम मिलता है, लेकिन टेसू के फूलों से रंगों का प्रचनल सैकड़ों वर्ष पुराना है। जब-जब गुलाल और अबीर की बात आती है तो भारत में हाथरस को नाम प्रथम पंक्ति में आता है। साहित्य और प्राचीन परंपराओं के जानकारी केली शबनम बताते हैं, भारत में हाथरस ही एक ऐसा शहर हुआ करता था जहां गुलाल बड़े पैमाने पर बनता था। हालांकि अब और स्थानों पर भी इसका निर्माण होता है, लेकिन हाथरस ने आज भी गुलाल में अपना स्थान प्रथम पर रखा है।
फिर से विश्वबाजार में पछाड़ा चीन को
लाल रंग में बनता गुलाल
अगर रंग और गुलाल की बात करें तो हाथरस लगातार अपने वर्रचस्व को बनाए हुए हैं। अगर रंग और गुलाल के जानकारों से मिली जानकारी के आधार को माने तो इस बार फिर से ड्रैगन (चीन) को हाथरस ने पछड़
बदलते दौर में बेरोजगारों के लिए रोजगार का
बहुत ही वहतर साधन है हर्बलधारा। सिर्फ
समझने की आवश्यकता है। क्योंकि बिना किसी
रिस्क और बिना किसी झंझट के होने वाला
यह डायरेक्ट सेलिंग बिजनेस बेरोजगार युवकों
को भी वह सब दे सकता है जो अंबानी और
 टाटा परिवार के पास है। इससे बड़ा
और कोई उदाहरण नहीं हो सकता है
दिया है। यही नहीं ड्रेगन (चीन) का गुलाल हाथरस के गुलाल से मंहगा है और गुणवत्ता में भी काफी कमजोर है। कारोबारी ने जानकारी देते हुए बताया कि चीन तकनीक में भेले ही अच्छा हो सकता है, लेकिन हाथरस में इसके लिए श्रमिक सस्ता उपलब्ध है। साथ ही गुलाल के लिए कच्चा माल भी यहां अच्छा और सस्ता उपलब्ध हो जाता है। पूरे विश्व बाजार के आंकड़ों को देखें तो 72 प्रतिशत मार्केट में हाथरस के गुलाल का ही कब्जा है। अगर दरकार है तो गुलाल उद्योग को सरकारी सपोर्ट की।
हर वर्ष मुंबई नगरिया में खप जाता है लाखों का गुलाल
हाथरस में बना गुलाल जहां होली में पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान दिलाता है। वहीं फिल्मों की नगरी मुबंई
मजंटा कलर के गुलाल को 
तैयार करते रंग श्रमिक
नगरिया में तो पूरे वर्ष भर हाथरस के गुलाल की खपत रहती है। क्योंकि वहां पर चलने वाली सूटिंगों के लिए गुलाल की आवश्यकता पड़ती ही है। वहीं ब्रज में भी मंदिरों में देवमूर्तियों और भक्तों पर हाथरस का गुलाल ही उड़ेला जाता है।
हजारों श्रमिकों को बनवा देता है हाथरस का गुलाल होली
रंग और गुलाल उद्योग वर्ष में तीन महीने हजारों मजदूरों को देता है रोजगार। होली के पर्व से करीब तीन-चार महीने पूर्व ही यहां पर श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। करीब चार महीने में तैयार होने वाले रंग और गुलाल से पूरी दुनियां होली के पर्व पर रंग-बिरंगी हो जाती है। होली के मौके पर मिलने वाले रोजगार से श्रमिकों के यहां पर भी होली का पर्व हर्ष और आनंद के साथ मन जाता है।

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