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जब तक वोट न डाला मौत को नहीं आने दिया अपने पास

लोकतंत्र में अपने खून से लिखा ओमप्रकाश ने एक नया अध्याय
संजय दीक्षित
लोकसंत्र सेनानी स्व.ओमप्रकाश जी
हाथरस। ओमप्रकाश जी ने अपने खून जो इतिहास लिखा है वह अमिट हो गया। वह अपना मत दे गए, लेकिन उंगली पर काला दाग लेकर इस दुनिया से विदा हो गए। हो सकता है सहाब यह बात आपके लिए मामलू रही हो, लेकिन जब-जब लोकतंत्र में चर्चाएं होंगी तो असली लोकतंत्र सेनानी के रूप में ओमप्रकाशी जी का नाम अमिट पाया जाएगा।
वोट डालने जाते
 ओमप्रकाश जी
वेदिक युग के वेदव्यास की तरह लोकतंत्र में लिखदिया खून से अध्यायः-
कुछ लोगों को कलम से इतिहास लिखने की आदत होती है, ठीक वैसे ही जैसे ‘‘रामायण’’ लिखदी थी बाल्मीकि ने और ‘‘रामचरित मानस’’ लिख दिया था तुलसीदास जी ने, ‘‘महाभारत’’ की वेदव्यास जी ने रचना कर वैदिक काल में एक अमिट इतिहास लिख दिया था। भले ही हमको इन लेखनीकारों के दर्शन नहीं होते, लेकिन आज भी उनकी लेखनी इन लेखकों की कहानी को ताजा रखे हुए है। ठीक इसी प्रकार ही

उंगली पर वोटिंग का काला निशान
यूपी के हाथरस के 75 वर्षीय गली सिद्दी सादागाद गेट निवासी ओमप्रकाश शर्मा पुत्र मंगलसेन शर्मा ने लोकतंत्र में एक अमिट इतिहास लिख दिया है, लेकिन उन्होंने यह इतिहास कलम और दबात से नहीं अपित् अपने खून से लिख लोकतंत्र को वह मजबूती दी है, जिसको सदियों तक लोग गा गा कर लोकतंत्र की गवाही देंगे।
आइए जानते हैं क्या है पूरा मामलाः-
उत्तर प्रदेश के जिला हाथरस के सादाबाद गेट स्थित गली सिद्दी निवासी 75 वर्षीय
ओमप्रकाश पुत्र मंगलसेन शर्मा हर बार की भांति इस बार भी लोकसभा चुनाव के 18 वें पढ़ाव के लिए काफी लालायित थे। समय होते ही वह नित्यक्रयाओं से परिपूर्ण हो घर से मतदान करने निकले थे। उनके क्षेत्र का
उनके परिवार के बाहर खड़े लोग
सर्राफा व्यापारी 
शैलेंद्र सर्राफ
मतदान केंद्र चामड़ गेट स्थित रामचंद्र कन्या इंटर काॅलेज को बनाया गया था। काॅलेज के बूथ संख्या 284 कमरा नंबर 04 में उनको वोट डालना था। हर बार की भांति वह इस बार भी समय से पहंुचकर मतदान की लाइन में थे। बताते हैं, लाइन में लगते ही उनके अचानक दर्द उठा और चक्कर से आए तो उन्होंने अपने शरीर की कोई परवाह नहीं की। उन्होंने मतदान कर्मियों से कहा भी, लेकिन कुछ
लोगों ने एतराज किया तो वह लाइन में ही लगे रहे। अपनी बारी आने पर उन्होंने बड़े ही फर्ती से अपने मत का
पीठासीन अधिकारी
दान किया और मतदान करते ही वह मौके पर ही चक्कर खाते हुए गिर पड़े। मौके पर हड़कंप मच गया आनन-फानन में उनको तत्काल जिला चिकित्सालय ले जाया गया, लेकिन वहां पर डाॅक्टरों उनको मृत घोषित
कर दिया।
देश के प्रति रखते थे निष्ठा और सम्मानः-
ओमप्रकाश जी देश और समाज के प्रति एक अलग ही सम्मान और निष्ठा थी। परिजनों और जानकारों की माने तो वे हमेशा लोकतंत्र सेनानी की भांति इस देश के कानून में विश्वास रखते थे और अपने जीवन में उन्होंने कोई चुनाव ऐसा नहीं गया जब मतदान न किया हो। हालांकि वह धार्मिक प्रवृत्ति के थे और खासकर मोदी जी की नीतियों के बड़े प्रशंसक थे। यही कारण था कि वह दर्द सहते हुए भी उन्होंने पहले अपना मतदान किया और फिर इस शरीर को त्यागा। 
प्रत्यक्षदर्शी शैलेंद्र बताते हैंः-
सर्राफा व्यापारी शैलेंद्र सर्राफ बताते हैं कि वह अपने परिजनों के साथ मतदान करने आए थे। वह मौके पर थे। मतदान से पूर्व ही उनको परेशानी हुई थी, लेकिन चिकित्सा के नाम पर उन्होंने यह ही कहा था कि पहले करूंगा मतदान उसके बाद जाऊंगा अस्पताल।

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