अनिल के दिमाग में है कविताओं का कंप्यूटर
-तीन शब्द बोला और तत्काल तैयार हो जाती है कविता
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हाथरस। कोई लिखता है, कोई वकता है, लेकिन यहां पर तो आप कोई भी तीन शब्द या अक्षर बताइए और तत्काल ओज की धारा में हास्य, व्यंग्य ओर वीर रस से सनी कविता पाइए। ‘‘ब्रज की द्वार देहरी’’ की इस मूरत को भले ही आज लोग न समझें, लेकिन यह तो निश्चित है कि इतिहास लिखने वाली इस शख्सीयत को साहित्य के समंदर में आने वाली पीढ़ियां सम्मान के साथ याद करेंगी।
जीहां! हम बात ‘‘हाथरस की हस्ती’’ आशु कवि अनिल बौहरे के संबंध में कर रहे हैं। जो हास्य-व्यंग्य के आका कवि काका व ओज के महाअंश बाबा निर्भयानंद के सानिध्य में साहित्य की सरगम पर सवार हो काव्य के मार्ग पर चल पड़े थे और अभी भी अनवरत चल रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि वह भी काका और निर्भय की परंपराओं को आगे बढ़ाने में साहित्य सौंदर्य बढ़ा रहे हैं तो गलत नहीं होगा।
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बौहरे की विशेष कलाः- अगर बात अनिल बोहरे की विशेषता की करें तो उनके द्वारा तत्काल कविता बनाने की जो कला है वह उनको ओज की ओर ले जाते हुए आपने आपमें एक विशेष स्थान पर ले जाती है। वह किसी से भी कोई तीन शब्द या तीन अक्षर पूछते हैं। बस बिना लिखे और बिना किसी बिलंभ के उनकी कविता चंद मिनटों में आपके सामने
पूरे हिन्दुस्तान में अपनी विधा की करा चुके हैं पहचानः-अनिल बौहरे अपने कविता पाठ का कश्मीर से कन्याकुमारी तक परिचम लहराचुके हैं। बौहरे ने उत्तर प्रदेश के अलावा तमिलनायडु, पांडुचेरी, आंधप्रदेश करर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार आदि राज्यों के सैकड़ों शहरों में काव्यपाठ कर लोगों को आल्लाहित किया है।
काव्यपाठ प्रथम मंच रहा था दाऊजी मेलाः-भले ही अनिल बौहरे भारत के कौने-कौने में साहित्य का समरस बिखेरचुके हों, लेकिन उनकी काव्य विधा का आरंभ ब्रज की द्वार देहरी हाथरस नगरी का प्रसिद्ध लक्खी मेला श्रीदाऊजी महाराज का अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ही रहा है। यह ही नहीं उनके संयोजनकत्व में करीब 8
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तंबाकू परिवार में हुआ था जन्मः-हाथरस के समाजसेवी बौहरे जवाहरलाल शर्मा तंबाकूवालों के यहां पर 24 अगस्त, 1951 में अनिल शर्मा का जन्म हुआ था। वह शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि और साहित्य के प्रति समर्पित थे। काका और निर्भय जी के अधिक निकट रहने के कारण ओज जैसी कहा में हास्य-व्यंग्य सराबोर रचनाएं उनकी एक अलग पहचान बनी हुई हैं। साहित्य के इस अद्भुत हस्ताक्षर के लिए द्वार की देहरी प्रमुदित होती है।




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