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Showing posts from September, 2018

मरणोपरांत सुरेंद्र कुमार दीक्षित को मिला पत्रकार रत्न सम्मान

मरणोपरांत सुरेंद्र कुमार दीक्षित को मिला पत्रकारत रत्न सम्मान -नगर विधायक और एसपी कासगंज ने किया सम्मानित, कहा हमारे लिए यह सम्मान की बात पं.रवींद्र कुमार दीक्षित को सम्मानित करते नगर विधायक हरीशंकर माहौर, साथ हैं एसपी कासगंज अशोक कुमार शुक्ल Hathras 30 सितंबर, 18। ‘पत्रकार रत्न’ की उपाधी उन त्यागी और कर्मठ व्यक्तित्वों को मिलता है जिनका इतिहास त्याग और देश सेवा के लिए समर्पित होता है। हम अपने आपको बड़ा ही गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि हमें उन पत्रकारों को मरणोपरांत सम्मातिन करने का मौका मिल रहा है। जिनमें से कइयों ने देश और समाज के लिए आजादी की लड़ाई में सहभाकिता की थी। मरणोपरांत ‘पत्रकार रत्न’ से नवाजे  गए वरिष्ठ पत्रकार पं. सुरेंद्र कुमार दीक्षित यह उद्गार नगर विधायक हरीशंकर माहौर ने रवीन्द्र कुमार दीक्षित जी को वरिष्ठ पत्रकार स्व. सुरेंद्र कुमार दीक्षित जी को मरणोपरांत ‘पत्रकार रत्न’ की उपाधी देते हुए व्यक्त किए। इस मौके पर मौजूद एसपी कासगंज अशोक कुमार शुक्ला ने कहा कि यह हमारे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है कि ऐसे व्यक्तित्वों को आज सम्मानित करने का मौका मिल र...

पत्रिकारिता के पुरोधा थे नरेंद्र दीपक जी, स्मृति शेष........

पत्रिकारिता के पुरोधा थे नरेंद्र दीपक जी, स्मृति शेष........ पत्रकारिता की पावन गंगा में जब परिवर्तन का दौर चला था। लेटर प्रेस से जब शब्द और वाक्यांशों को वह समूह जब आई थी टीम यानि कंप्यूटर पर आया ही था कि एक दुखद घटना ने हम से हमारे एक प्रवल पक्षधर को छीन लिया था। एक स्वागत समारोह के दौरान स्व.रमाकांत चतुर्वेदी के साथ स्व. नरेंद्र दीपक जी जी हम स्व. नरेंद्र दीपक जी की बात कर रहे हैं। अंग्रेजों के खिलाफ जिन्होंने पत्रकारिता को हथियार बनाया था और जमन दिलाया था नागरिक को उन सूर्यपाल आजाद के भांजे नरेंद्र दीपक ने भी अपने मामा के गुरु पत्रिकारिता में अपना कर एक कीर्तिमान स्थापित किया था। दर असल नागरिक ही पत्रिकारिता के क्षेत्र में स्व. दीपक जी का प्रेरणा श्रोत बना था और बाद में जनता युग, जन सत्ता के अलावा अमर उजाला जैसे प्रिंट समूह में विशुद्ध पत्रिकारिता की। नरेंद्र दीपक के रूप में पत्रकारिता को हर राजनेता, हर अधिकारी और और हर व्यापारी समूह में वह सम्मान मिलता था जो पत्रकारिता को मिलना ही चाहिए था। कुछ विदंतियां अगर छोड़ दे ंतो नरेंद्र दीपक के समय तक पत्रकारिता का जिले में जल...

पत्रकारिता और रिपोटिंग के मध्य एक मजबूत कड़ी थे रमाकांत चतुर्वेदी

पत्रकारिता और रिपोटिंग के मध्य एक मजबूत कड़ी थे रमाकांत चतुर्वेदी मुख से विनम्रता और कलम से कट्टरता का परियाय थे हमारे बड़े भाई रमाकांत चतुर्वेदी। आज भले ही वह हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी कुछ बातें आज भी धरी सी याद हैं। भले ही हमारे और उनके बीच कुछ बातों को लेकर मतभेद थे, लेकिन मनभेद नहीं थे। नीति और सिद्धातों पर चौबेजी और हमारे बीच एक तालमेल रहता था। आकाशवाणी वार्ताकार के रूप में आरंभ की गई उनके द्वारा पत्रिकारिता की पारी हिन्दी दैनिक जनतायुग, जुगनू, अमर उजाला, नीतियुद्ध के अलावा दैनिक जागरण तक रही। जहां बीमारी ने के चलते काल के कू्रर हाथों ने हमसे एक शब्दों के एक ऐसे पारखी को छीन लिया जिसकी भरपाई षायद हो नहीं सकती। क्योंकि वह पत्रकारिता और रिपोटिंग दोनों के मध्य एक मजबूत कड़ी के रूप में थे। पत्रकारिता का दौर चल रहा है। उम्मीद करते हैं कि अपने पत्रकारिता के अपने नवोदित छात्र भाइयों को भी पता चले के हमारा बीता हुआ कल क्या था और आज क्या है। अगर इस प्रकार की लेखनी और लेखों से भी पत्रकारिता जीवित रहे तो भी सकून महसूस होगा।

तुंग के वीणा पर ठुमके कृष्ण, तुंग की भक्ति में झूमते रहे ब्रज की द्वार देहरी के भक्त

तुंग के वीणा पर ठुमके कृष्ण, तुंग की भक्ति में झूमते रहे ब्रज की द्वार देहरी के भक्त -वीणा में प्रवीण तुंगविद्या सखी के वादन पर झूमते थे कृष्ण -ब्रज की द्वार देहरी ‘‘हाथरस’’ के भक्तों ने मासिक यात्रा में जमकाया तंगविद्या के दरवार में अपना डेरा संजय दीक्षित Hathras 23 सितंबर 18। अष्टसखी यात्रा महोत्सव में ब्रज बरसाना यात्रा मंडल, हाथरस के महीने का तीसरा पड़ाव तुंग विद्या सखी मंदिर हुआ। तुंग विद्या के संबंध में बताया जाता है कि वीणा में प्रवीण सखी तुग विद्या बरसाने के समीप ही गावं डभारा में निवास करती हैं।  तुंगविद्या सखी विग्रह दर्शन गांव डभारा तुंगविद्या स्थान विशेषः- यह गांव बरसाना से दक्षित दिशा में करीब छह किलो मीटर की दूरी पर है। यहां की विशेषता यह है कि यहां पर श्री राधिकारानी सख्यिं सहित गुड्डा-गुड्डिया का खेल खेती थीं और सखी तुंगविद्या की वीणा की धुन पर श्रीकृष्ण भी नृत्य करने यानि झूमने के लिए मजबूर हो जाते थे। यहीं पर श्रीराधाकृष्ण की सखी रंगविद्या चंवर सेवा में रहती थीं। सखी तुंगविद्या के संध में कहा जाता है कि इनका जन्म भाद्रपद शुक्लपक्ष पंचमी को हुआ थ...

पहला मेला श्रीदाऊजी महाराज संपन्न हुआ था छह सौ रुपये एक आने में, अब ठेका ही उठा एक करोड़ एक लाख का

600 रुपये में संपन्न होने वाले मेला श्रीदाऊजी महाराज का ठेका ही उठा इस वार एक करोड़ एक लाख का -दूसरे मेले पर खर्च आया था महत छह सौ रुपये सात आने, जबकि चंदा हुआ था 913 रुपये 3 आने -महज 32 रुपये में हो गई थी मंदिर परिक्षेत्र की रंगाई-पुताई, अब होते हैं लाखों खर्च Hathras 22 सितंबर, 18। छह सौ बनाम एक करोड़ एक लाख। भगवान शिव की कामाना का इतिहास निराला है। मतलब ब्रज का द्वार यानि ‘‘हाथरस’’। माता हाथुरसी मंदिर से ही ब्रज की हद शुरू हो जाती है शशीकांत गौतम, मेला सहयोगी और यहीं से शुरू होता है रस की नगरी हाथरस का इतिहास। मां के मंदिर से चंद कदमों की दूरी पर बने रोहिणी के लाला का ऐतिहासिक मंदिर का इतिहास तो इतना है की बखान ही  नहीं हो सकता, लेकिन एक पहलु को ही उठाकर देखलें तो आंखे फटी की फटी रह जाती हैं। हम बात कर रहे हैं ऐतिहासिक मंदिर श्री दाऊ जी महाराज मंदिर के मेले की। जहां पहला मेला मात्र छह सौ रुपये में संपन्न हुआ था, लेकिन 107 वें मेला का ठेका ही एक करोड़ एक लाख का उठा है। विद्यासागर ‘विकल’ मेला जानकार मेले के इतिहास को खंगालें तो महंगाई का परिमाप निकल कर सामने ...

**काका हाथरसी** ‘जन्मे तो हंसी की किलकारी थी, अवसान पर हास्य व्यंग्य की पारी थी’

हास्यावतार काका के जन्म और अवसान दिवस पर विषेश ‘जन्मे तो हंसी की किलकारी थी, अवसान पर हास्य व्यंग्य की पारी थी’ संजय दीक्षित काका हाथरसी काकी के साथ प्रसन्न मुद्रा में Hathras 18 Septembar,18 । ‘जन्मे तो हंसी की किलकारी थी, अवसान पर हास्य व्यंग्य की पारी थी।’ जी हां! ‘‘हास्यअधिनायक’’प्रभुदयाल गर्ग उर्फ ‘‘काका हाथरसी’’ के रूप में 18 सितंबर 1906 में हंसी के समुंदर ने उफान लिया था और 18 सितंबर, 1995 को कविता रूपी महासागर में सिमट गया। हम बात इसी सख्शीयत की कर रहे हैं जो बाकई हंसी का समंदर था। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन ठहाका मारते हर व्यक्ति के चेहरे पर उनके हर रोज दर्शन होते हैं। क्योंकि काका का यही सपना था कि देश और समाज का हर व्यक्ति हंसता और मुस्कराता रहे। अपनी एक रचना में उन्होंने इसके लिए यह संदेश भी दिया था कि ‘‘भोजन आधा पेट कर दुगना पानी पीउ। तिगुना श्रम, चौगुन हंसी, वर्ष सवासो जीउ।।’’ इस संदेश से यह भी साबित होता है कि काका केवल कवि ही नहीं, बल्कि एक अच्छे समीक्षाकार और शोधकर्ता भी थे। क्योंकि उनकी इन लाइनों को जो भी अपनाएगा वह निश्चित ही लंबी ...

सद्गृहस्त संतों में ब्रजनाथशरण आरोड़ा जी का भी आता है नाम

ऋषि पंचमी पर पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों का आज भी उने परिजन करते हैं पूजन  संजय दीक्षित 13 सितंबर, 18। सद्गृहस्त संतों को लेकर जब-जब चर्चाएं होंगी तो ब्रज की द्वार देहरी का नाम भी प्रथम पंगति में नजर आएगा। पं. गया प्रसाद जी महाराज जैसी महान विभूति रस की देहरी ‘हाथरस’ के लिए एक गौरव की बात है। ठीक उन्हीं का अनुसरण करते हुए हाथरस के सद्गृहस्त संतों में नाम आता है ब्रजनाथ शरण आरोड़ा जी का। बाबा गया प्रसाद जी महाराज जी हां! कन्हां के जन्म का प्रसंग तो पूरा विश्व जानता है, लेकिन यह हर कोई नहीं जनता होगा कि कृष्ण जन्माष्टी यानि नंद के लाला के जन्म के कुछ समय बाद ही ‘हाथरस’ नगरी का भी नामकरण संस्कार हो गया था। महत्वपूर्ण यह भी कि यह नामकरण किसी और ने नहीं बल्कि चराचर जगत के स्वामी भोलेनाथ ने किया था। पं. उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि ब्रह्मवैवर्त पुराण का अगर अध्ययन करें तो द्वापरयुग के वक्त हाथरस नगरी का प्रसंग आता है। जहां मां पार्वती की प्यास के लिए भगवान शिव ने हाथ से जल यानि रस निकाला था और इस स्थान का नाम ‘हाथरस’ रखा गया था। इस वैदिक नगरी में ही जन्म सद्गृहस्त सं...
शिक्षा और शिक्षा के अच्छे तालमेल का मतलब देश का विकास 06 अगस्त, 18। शिक्षा से जीवन में संचार होता है विकास का और इस विकास को सींचने वाला ही शिक्षक कहलाता है। शिक्षा का कोई स्पेशल स्वरूप नहीं होता। शिक्षक तो वह दिव्य पुंज होता है जो खुद दलता है, लेकिन प्रकाश उस हर शख्स के जीवन में करता है जो उसके संसरर्ग में आता है।  यह उद्गार वरिष्ठ समाजसेवी व लायंस क्लब के अध्यक्ष अशोक कपूर ने अलीगढ़ रोड स्थित एक जय पैलेस गेस्टहाउस में लायंस क्लब द्वारा आयोजित किए गए शिक्षाक सम्मान के मौके पर व्यक्त किए। इस मौके पर शिक्षाविद् पूर्व प्राचार्य आरसी शर्मा, अशोक कुमार कुलश्रेष्ठ के अलावा अन्य शिक्षकगणों को सम्मानित करते हुए शिष्य-गुरु परंपरा पर कार्य करने का आह्वान किया गया। इस मौके पर लायन व वरिष्ठ अधिवक्ता घनश्यामकिशोर शर्मा, डॉ.राघवेंद्र मोहता, राजीव तिवारी एडवोकेट, संजीव उपाध्याय, दिनेश मेहरवाल आदि लायन मैम्बरर्स मौजूद थे। 

बेटी तो बच गई, लेकिन मौत से खेल रही

विज्ञापन और प्रचारतक ही ज्यादा असर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संजय दीक्षित पढ़ाई की उम्र में मौत का खेल दिखाती छोटी बच्ची 12 सितंबर, 18। उम्र करीब 7 वर्ष, लिंग स्त्री, स्थान लोहट बाजार, शहर व जिला हाथरस (उत्तर प्रदेश), समय करीब साढ़े तीन बजे दिन के और नारा बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ। लेकिन पढ़ाई के स्थान पर एक छोटी सी जान हर पल मौत का करतब दिखा रही है और करीब 15 वें राहगीर के बाद कोई एक उसको दो, पांच या दस का नोट देकर आगे बढ़ रहा था। क्या यही है मेक-इन-इंडिया। इंडिया बदल रहा है, क्या खाक बदल रहा है। सरकार का नारा है ‘‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’’ उस नन्हीं सी जान जिसका फोटो भी इस खबर के साथ अटेच है। देंखे आप उसकी उम्र इस जोखिम भरे काम को करने के लिए एलाऊ करती है। नहीं ना, लेकिन ऐसा ही हो रहा है जनाब। भ्रष्टतंत्र की किताब उठाकर देंखे तो सरकार से जारी सारी योजनाओं पर खर्च होन वाला पैसे का दसवां भाग भी वहां तक नहीं पहुंच रहा जहां उसे पहुंचना चाहिए। क्यों दिखाती है वह खेलः- कविता निवासी सासनी क्षेत्र का एक गांव अपनी साढ़े छह वर्ष की बेटी हिमांशी (सभी बदले हुए नाम हैं) के साथ रोज घर से इस पापी...

पूरे भारत के साथ हाथरस में भी ऐतिहासिक बंद, कई संगठनों ने घंटाघर पर दिया एससी/एसटी के विरोध में ज्ञापन

पूरे भारत के साथ हाथरस में भी ऐतिहासिक बंद, कई संगठनों ने घंटाघर पर दिया एससी/एसटी के विरोध में ज्ञापन पंजाबी मार्केट, हाथरस 06 सितंबर, 18। एससी/एसटी को लेकर आज एक मंच पर दिखाई दिया भारत। हर शहर और हर कस्बे में ऐतिहासिक बंद प्रदर्शन से यह ही सिद्ध होता है कि निश्चित ही सरकार ने कोर्ट के फेसले को चेलेंज कर गलत किया है। जीहा! हम बात एससी/एसटी काले कानून के विरोध में पूरे भारत बंद के आह्वाहन के बाद रही बाजार बंदी ऐतिहासिक रही। अर्थात यह कहावत सिद्ध होती है कि ‘‘राम से और गाम से किसी की न जिला एवं सत्र न्यायालय, हाथरस पर एससी/एससी  एक्ट का विरोध करते अधिवक्तागण बसियावे’’ अर्थात प्रभु और पब्लिक से जिसने भी टक्कर ली है उसने हमेसा मौखी खाई है। गुरुवार को पूरे भारत से जो खबरें और चित्र और चलचित्र देखने को मिले उससे तो बंद ऐतिहासिक दिखा और इससे यह होता दिखाई दे रहा है कि आरक्षण, एससी/एसटी एक्ट आदि को लेकर पूरे भारत की पब्लिक एकमत हो चली है। और हो भी क्यों नहीं क्योंकि इससे जो परिणाम निकल कर सामने आ रहे हैं उससे देश के विकास पर प्रश्न चिन्ह लग कर रह गया है। इन काले कानूनो...

हरियाणा में दिया था श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान, दारूक हांकते थे श्रीकृष्ण का रथ

हरियाणा में दिया था श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान, दारूक हांकते थे श्रीकृष्ण का रथ संजय दीक्षितः- 8630588789 जेल में जन्मे थे श्री कृष्ण तो बाली (ज़रा) का वाण बना था बैंकुंठ गमन का कारण, दुर्योधन के बने थे कृष्ण समधी -श्रीकृष्ण के जन्म और सगे संबंधियों का यह है इतिहास -हर स्थान पर अलग-अलग नाम से पुकरा जाता है कृष्ण को -कन्हैया न डॉन है न तड़ीपार वह तो हमारा रखवाला है ब्रज के नंदगांव की मनोहरी छप्पन भोग श्रृंगार दर्शन ‘‘हाथरस’’ के रहब्बइया (रहने वाले) द्वार पाल हैं। क्योंकि हाथरस से ही ब्रज आरंभ होता है और हाथरस को ब्रज की द्वार देहरी कहा जाता है। इसलिए यहां के लोग यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते कि लोग उनको डॉन, तड़ीपार आदि कहें। यह वैसे भी गलत है और अयोग्यता का परिचायक है। इसलिए श्रद्धा के साथ भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को मनाएं और आचार संहिता के अंदर रह कर शुभकामनाएं दें। हर प्रांत और देश में अलग-अलग नाम से विख्यात है कन्हैयाः- उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है। राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है। महाराष्ट्र में बिट्ठल...

श्रीकृष्ण के चंद घंटों बाद ही जन्म हो गया था हाथरस का, जानिए कैसे ? कहते हैं ब्रज की द्वार देहरी

श्रीकृष्ण के चंद घंटों बाद ही जन्म हो गया था हाथरस का, जानिए कैसे ? कहते हैं ब्रज की द्वार देहरी संजय दीक्षितः-8630588789 माता हाथुरसी देवी (मां पार्वती) सैकड़ों वर्ष पुरानी  प्रतिमा जिससे होती है हाथरस की पहचान 02 सितंबर, 18। आज हाथरस नगर की असली आधाशिला रखे जाने की पांच हजार वर्ष पुरानी वर्षगांठ है। हालांकि वेदिक इतिहास को उठाकर देखें तो ‘‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’’ में ‘‘हाथरस’’ के नामकरण का जिक्र मिलता है। जिसमें तिथि के हिसाब से द्वापर युग में भादों मास की नवमीं और दसमीं तिथि के मौके पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ यहां पर आए थे और माता पार्वती के लिए हाथ से रसपान कराया था इसलिए इस नगरी का नाम ‘‘हाथरस’’ पड़ा। श्रीकृष्णजन्म और हाथरस का आपस में बहुत सैकड़ों वर्ष पुराना शिव परिवार और पींडी ही पुराना नाता रहा है। दरअसल हाथरस नगरी से ही ब्रज का प्रारंभ होना बताया जाता है। धर्मवेत्ता स्व. सुरेशचंद्र मिश्र जी ने अपने कई कार्यक्रमों में वक्तव्य देते हुए पौराणिक आधार पर यह सिद्ध भी किया था कि हाथरस नगरी माता पार्वती का विश्राम स्थल है। क्योंकि श्रीकृष्ण जन्म के चंद घंटों...