रथयात्रा के इतिहास को कोरोना का कलंक -काका की नगरी में दो अपै्रल को निकाली जानी थी 138 वीं श्रीराम नवमीं तिमंजला रथयात्रा -1882 में हुआ था वृंदावन की तर्ज पर तिमंजला रथयात्रा का शुभारंभ -बड़ा ही रोचक इतिहास था बैनीराम परिवार और रथयात्रा महोत्सव का संजय दीक्षित विगत वर्ष निकाली गई तिमंजिला रथयात्रा फाइल चित्र हाथरस। चाकू की चमक और हींग की हनक के अलावा पद्श्री काका हास्य के आका और आशुकविता के पुरोधा निर्भय हाथरसी के नाम से पहचाने जाने वाला शहर ‘हाथरस’ रथ यात्रा के इतिहास का भी गवाह है। तिमंजिला रथ यात्रा के इतिहास में मूंछों वाले राम की यात्रा दो अप्रैल को अपना 138 वां चक्र दौहराने वाली थी, लेकिन अब कोरोना के दंश के चलते यह चक्र कल टूट जाएगा। ब्रज की द्वार देहरी कहे जाने वाली हींग की नगरी ‘हाथरस’ कोरोना के चलते ‘‘मूंछों वालों की यात्रा’’ अपने 138 वें चक्र में प्रवेश नहीं कर पाएगी। हालांकि हाथरस की पहचान विश्व बाजार में चाकू, हींग और रंग-गुलाल के अलावा, हास्य, व्यंग्य, ओज की फंहार के साथ-साथ बैनीराम परिवार से निकलने वाली तिमंजिला रथयात्रा से भी है। 1882 मे...